तुम मुझको क्या रोकोगे
हिय दृढ़ संकल्प ज्योत,लक्ष्य बिंदु सदा निश्चल ।
मिटा कथनी करनी विभेद,
अथक श्रम साधना निश्छल ।
पथ कंटक कष्ट बाधा बन,
अब कितनी ताकत झोंकोगे ।
तुम मुझको क्या रोकोगे ।।
शमन कर नैराश्य क्रोध,
नव आशा उमंग वरण ।
अप्रतिम जोश उत्साह तरंगें,
अनैतिक पट प्रतिकार प्रण ।
व्यंग्य कटाक्ष आलोचनाएं बन,
कितनी बार और भोंकोगे ।
तुम मुझको क्या रोकोगे ।।
मानवता उत्थान सेवा भाव,
रग रग सरस प्रवाहित ।
नित अग्र राष्ट्र धर्म निर्वहन,
हाव भाव मर्यादा धारित ।
पुनीत पावन कृत्य मध्य,
कितनी बार और टोकोगे ।
तुम मुझको क्या रोकोगे ।।
आत्मविश्वास संग मैत्री बंधन,
कदम उन्मुख सफलता ओर ।
उर भावनाएं शुभ मंगला धारी,
समग्र खुशियां प्रयास पुरजोर ।
देख मेरी बुलंद अठखेलियां,
अब कितना और चौंकोगे ।
तुम मुझको क्या रोकोगे ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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