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संस्कृत दिवस व रक्षाबंधन : भाई-बहन के प्रेम और समृद्ध विरासत का संगम

संस्कृत दिवस व रक्षाबंधन : भाई-बहन के प्रेम और समृद्ध विरासत का संगम

जहानाबाद। भाई-बहन के अटूट प्रेम और प्रकृति संरक्षण के प्रतीक रक्षाबंधन के पावन पर्व पर, भारतीय संस्कृति की धरोहर संस्कृत दिवस भी मनाया गया। साहित्यकार और इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने इस अवसर पर कहा कि संस्कृत हमारी सांस्कृतिक विरासत की आत्मा है। हर साल श्रावणी पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस दिवस का गहरा ऐतिहासिक महत्व है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 1969 में इसे मनाने का निर्देश जारी किया था। प्राचीन काल में इसी दिन से नए शैक्षणिक सत्र का आरंभ होता था, जब विद्यार्थी वेद और शास्त्रों का अध्ययन शुरू करते थे। इसलिए, यह दिन ऋषियों और उनके ज्ञान को समर्पित है। संस्कृत, जिसे कई भाषाओं की जननी माना जाता है, न केवल हमारी भाषाई विरासत है, बल्कि योग, आयुर्वेद, ज्योतिष और दर्शन जैसे क्षेत्रों में भी इसका गहरा प्रभाव है। यह दिवस हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए इस प्राचीन भाषा के संरक्षण का संदेश देता है।
संस्कृत के महत्व को उजागर करने और इसे पुनर्जीवित करने के लिए देश भर में कई प्रयास किए जा रहे हैं। शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृत श्लोक पाठ प्रतियोगिताएं, व्याख्यान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।आज, संस्कृत भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है और उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा भी है। देश भर में कई संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हैं, जैसे वाराणसी का संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी (1791) और नई दिल्ली का श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (1962), जो इस भाषा के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा दे रहे हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भले ही संस्कृत एक प्राचीन भाषा है, लेकिन इसका महत्व आज भी प्रासंगिक है।

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