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जलजला हूं

 जलजला हूं

रमाकांत सोनी
जलजला हूं आग की भांति जला हूं।
सच्चाई की डगर पे अब बढ़ चला हूं।
हौसलों से लिखूं संघर्षों की कहानी। 
आंधियों तूफानों में निर्भय पला हूं।

काव्य रस घोलती कलम सयानी। 
भावों की धारा बहती उर सुहानी।
कुंदन बन सांचे में तपकर ढला हूं। 
महफिलों में कारवां लेकर चला हूं।

वीरों का गुणगान गाता हूं गीतों में। 
प्रीत भी निभाता रिवाज़ो रीतों से। 
चाहे अपनों से पल-पल छला हूं।
रोशनी का दीप लिए बढ़ चला हूं।

खुशियों का पैगाम बांटती लेखनी।  
जिंदगी को राहें नई हमको देखनी। 
 सौरभ दिलों में महकाने मिला हूं।
सुदर्शन सृजन भरा सिलसिला हूं। 

रमाकांत सोनी सुदर्शन 

नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान 

रचना स्वरचित व मौलिक है
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