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रक्षाबंधन: स्नेह, सुरक्षा और सांस्कृतिक विरासत का पावन पर्व

रक्षाबंधन: स्नेह, सुरक्षा और सांस्कृतिक विरासत का पावन पर्व

सत्येन्द्र कुमार पाठक
रक्षाबंधन, जिसे राखी, सलूनो, या श्रावणी भी कहा जाता है, भाई-बहन के अटूट प्रेम और सुरक्षा के बंधन का प्रतीक एक महत्वपूर्ण हिंदू और जैन त्योहार है। प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व, सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग रहा है।
रक्षाबंधन का महत्व और अनुष्ठान - स्नेह का बंधन: रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है 'सुरक्षा का बंधन'। इस दिन बहनें अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर और उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधकर उनकी लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं। भाई इसके बदले में अपनी बहन की रक्षा और सहायता का वचन देते हैं और उन्हें उपहार भी देते हैं। यह त्योहार न केवल रक्त संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ लाने का अवसर भी प्रदान करता है, जिससे रिश्तों में मिठास और एकजुटता आती है।
राखी का स्वरूप: राखी साधारण कच्चे सूत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, या सोने-चांदी जैसी मूल्यवान वस्तुओं तक की हो सकती है। इसका वास्तविक महत्व इसके पीछे छिपी भावना और प्रेम में है। सामाजिक और धार्मिक विस्तार: यद्यपि राखी मुख्य रूप से बहनों द्वारा भाइयों को बांधी जाती है, पर यह ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में सम्मानित संबंधियों को भी बांधी जाती है, जो सम्मान और सुरक्षा के भाव को दर्शाता है। नेपाल में, ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदाय में गुरुओं और भांजे के हाथ से भी राखी बांधी जाती है।
पौराणिक और ऐतिहासिक जड़ें - रक्षाबंधन का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसके मूल पौराणिक काल से जुड़े हैं: राजा बलि और भगवान वामन: भविष्यपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के वामन अवतार ने दानवीर राजा बलि को पाताल लोक में भेजने से पहले उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। बाद में, देवी लक्ष्मी ने भी अपने पति की सुरक्षा के लिए राजा बलि को रक्षाबंधन बांधा था। इंद्र और इंद्राणी: भविष्य पुराण में ही कृष्ण और युधिष्ठिर के संवाद में वर्णित है कि गुरु बृहस्पति ने इंद्राणी को राक्षसों से इंद्रलोक की रक्षा के लिए श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्र के तिलक लगाकर रक्षासूत्र बांधने का उपाय बताया था, जिससे इंद्र विजयी हुए थे। द्रौपदी और श्रीकृष्ण: एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण की उंगली कट गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांधा था। श्रीकृष्ण ने इसके बदले में द्रौपदी को हर संकट से रक्षा का वचन दिया था, जिसे उन्होंने चीर हरण के समय पूरा किया।रानी कर्णावती और हुमायूं: ऐतिहासिक रूप से, महारानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर सुरक्षा मांगी थी, जो इस त्योहार की व्यापकता और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।रवींद्रनाथ टैगोर और जन जागरण: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, श्री रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंग-भंग के विरोध में रक्षाबंधन को बंगालियों के बीच भाईचारे और एकता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने इस दिन को मातृभूमि वंदना कविता लिखकर और लोगों को एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांधने के लिए प्रेरित करके राजनीतिक उपयोग दिया।
विभिन्न क्षेत्रों में रक्षाबंधन - रक्षाबंधन पूरे भारत में विभिन्न नामों और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है:उत्तरांचल: यहां श्रावणी को यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, जहां वे उत्सर्जन, स्नान-विधि, ऋषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत और राखी देकर दक्षिणा लेते हैं।
महाराष्ट्र: इस राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से जाना जाता है।अमरनाथ यात्रा: गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर, अमरनाथ यात्रा रक्षाबंधन के दिन संपन्न होती है, जब हिमानी शिवलिंग अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है।
रक्षा सूत्र (मौली) का महत्व और लाभ - रक्षा सूत्र, जिसे मौली या कलावा भी कहते हैं, केवल राखी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक प्राचीन वैदिक परंपरा है जिसका उपयोग विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ कार्यों में होता है।
धार्मिक महत्व: पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन और अन्य संस्कारों से पहले पुरोहित यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधते हैं। मौली बांधने से ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है, जिससे कीर्ति, रक्षा, दुर्गुणों का नाश, धन, शक्ति और बुद्धि की प्राप्ति होती है।मौली को पंचदेव का प्रतीक है, जिसमें पांच रंग के धागे (लाल, पीला, हरा, नीला और सफेद) शामिल होते हैं। "येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥" अर्थात, "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ: चिकित्सीय लाभ: आयुर्वेद और शरीर विज्ञान के अनुसार, कलाई पर मौली बांधने से वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। यह ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव में भी सहायक माना जाता है। कलाई से होकर गुजरने वाली नसें नियंत्रित रहती हैं, जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है और ऊर्जा का अनावश्यक क्षय नहीं होता।
मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ: मौली बांधने से मन में शांति और पवित्रता बनी रहती है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं, और व्यक्ति सही मार्ग पर अग्रसर होता है। यह सूक्ष्म शरीर को स्थिर करता है और बुरी आत्माओं के प्रवेश को रोकता है। भाग्य और जीवन रेखा: मणिबंध (कलाई) को भाग्य और जीवन रेखा का उद्गम स्थल माना जाता है, जिसमें दैहिक, दैविक और भौतिक तापों को देने और मुक्त करने की शक्ति होती है।
मौली बांधने के नियम: - पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंध रहा हो, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर रखा होना चाहिए।मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना शुभ माना जाता है। उतारी हुई मौली को पीपल के वृक्ष के पास रखा जा सकता है या बहते जल में प्रवाहित किया जा सकता है।यह पर्व-त्योहारों के अलावा संक्रांति, यज्ञ की शुरुआत, किसी भी इच्छित कार्य के प्रारंभ, और मांगलिक कार्यों जैसे विवाह के दौरान भी बांधी जाती है।
संस्कृत दिवस और पर्यावरण संरक्षण - रक्षाबंधन को संस्कृत दिवस भी कहा जाता है, क्योंकि श्रावण पूर्णिमा को वेदों, पुराणों, स्मृतियों और संहिताओं का संस्कृत में लेखन कार्य प्रारंभ हुआ था। यह दिन पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षों को रक्षासूत्र बांधने और परिवार की रक्षा के लिए माँ को रक्षासूत्र बांधने जैसे दृष्टांतों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
"जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।"
अर्थात, जो इस विधि से रक्षाबंधन का आचरण करता है, वह सभी दोषों से रहित होकर वर्ष भर सुखी रहता है।
रक्षाबंधन मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में निहित प्रेम, सुरक्षा और सम्मान के शाश्वत मूल्यों का प्रतीक है। यह हमें अपने संबंधों को संजोने और एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को याद दिलाने का अवसर देता है।
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