कंकर कंकर अंतर शंकर
जटा शोभित पावन गंगा,विष भुजंग कंठन हार ।
सजल लहर चपल चपल,
स्वर्ण अनल ललाट श्रृंगार ।
सौम्य अर्ध चंद्र भाल प्रतिष्ठा,
त्रिलोकी पितृ रूप शुभंकर ।
कंकर कंकर अंतर शंकर ।।
सहज कृपालु सरल जप तप,
गौण समय स्थान वेश बिंदु ।
संपूर्ण सृष्टि परिवार अनुपमा,
प्रेम करुणामय हृदय सिंधु ।
तरल अनल गगन पवन,
दुःख कष्ट भेद्य जंतर मंतर ।
कंकर कंकर अंतर शंकर ।।
अनादि देवाधि देव पदवी,
प्रसून धूलि शीर्ष विराजित ।
कामना पूर्ण अर्णव प्रभा,
रज रज रग रग सुभाषित ।
दमन इंद्र देव कामनाएं,
शमन कामदेव वासना भयंकर ।
कंकर कंकर अंतर शंकर ।।
मनोरम छटा नंदिनी स्वरूप,
नील कंठ पंकजा समान ।
समस्त सिद्धि परम स्पर्श,
मनुज संग देवता दंड विधान ।
शेष प्रशेष अशेष विशेष उपमा,
निर्माण विनाश छवि अलंकर ।
कंकर कंकर अंतर शंकर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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