मिथ्या से बचे
गुजरते वक्त ने मुझकोबहुत कुछ सिखा दिया।
लोगों की फितरत को
जमाने ने दिखा दिया।
समझ नही पाता में
अगर लोगों को पढ़ना।
तो मेरी दुर्दशा भी
भारत के जैसी होती।।
लोगों को सपनों में जीने की
अगर आदत लग जाये।
और कल्पनाओं में भी
डूबने की आदत हो जाये।
तो हकीकत को कभी भी
ये स्वीकार नही करते।
और व्यवस्थाओं को भी
जीवन में उतार नही सकते।।
निकालो खुदको बाहर तुम
कल्पनाओं के सागर से।
हकीकत के तभी तुमको
दर्शन मिल जायेंगे।
दिलों की धड़कनो को
फिर शायद पढ़ पाओगें।
और मानव जीवन के भी
गुण-दोषों को समझ पाओगें।।
सभी का कर्तव्य बनता है
मिथ्याओं से बचकर रहने का।
प्रलोभन आदि से भी
हमें बस बचकर रहना है।
हमारी मेहनत ही लोगों
हमारी तकदीर होती है।
इसलिए कर्म हमें करना है
फल तो अच्छे मिल जायेंगे।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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