जो कभी लगता खुदा का करम था।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जो कभी लगता खुदा का करम था।
अब लगे है, वो खालिस भरम था।दिखते नहीं हैं कहीं वे अब दूर तलक,
जिनका बाजार कभी बहुत गरम था।
सरबजानू हो गए आज, जिनका-
कहकहों से गूँजता हरदम हरम था।
चल दिए हम बज्म से बेसाख़ता,
माहौल ही बेहद बेशरम था ।
घी पी रहे हैं ओढ़कर कंबल,
त्याग-तप ही जिनका धरम था।
ठोकरें खाते फिरे जो दरबदर,
दिल कंदील से भी ज्यादा नरम था।
दिलोदिमाग की हमनफसी बेशक,
पयामे नबी ये इंसान को अहम था।
(सरबजानू =घुटनों पर सिर रखे अर्थात् दुःखी,उदास)
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