"आंतरिक संतोष : सच्चे सुख की कुंजी"
मित्रों हम अक्सर सोचते हैं कि सुख बाह्य वस्तुओं, सुविधाओं या परिस्थितियों पर निर्भर करता है। परंतु जीवन का गहरा सत्य यही है कि अत्यल्प साधनों में भी पूर्ण सुख की अनुभूति संभव है। सुख का स्रोत न तो भौतिक साधनों में छिपा है, न ही परिस्थितियों की अनुकूलता में — वह तो हमारे भीतर, हमारे मन एवं दृष्टिकोण में समाहित है।जब मन शांत होता है एवं विचार सकारात्मक होते हैं, तब साधारण सी बातें भी हृदय को प्रसन्नता से भर देती हैं। एक सरल मुस्कान, स्वच्छंद प्रकृति का सौंदर्य, या अपनों का सान्निध्य — ये सभी जीवन को मधुर बना सकते हैं यदि हम उन्हें सच्चे हृदय से ग्रहण करें। वहीं दूसरी ओर, यदि मन अशांत एवं लालसा से भरा हो, तो अपार वैभव के बीच भी व्यक्ति विषादग्रस्त रह सकता है।
महान दार्शनिकों एवं संतों ने सदैव यही सिखाया है कि सुख बाहर नहीं, भीतर है। यह हमारे चिंतन की दिशा से उत्पन्न होता है। सकारात्मक दृष्टिकोण, संतोष की भावना एवं कृतज्ञता का भाव ही जीवन को सार्थक बनाते हैं। जो व्यक्ति कम में भी तृप्त रहना जानता है, वही वास्तव में धनी है।
इसलिए सुख की खोज बाहरी दुनिया में नहीं, अपने भीतर की दुनिया में कीजिए। अपने विचारों को शुद्ध एवं निर्मल बनाइए — सच्चा सुख स्वतः आपके जीवन में उतर आएगा।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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