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खेल

खेल

हर खेल में ऐसा होता है।
कोई हंसता है कोई रोता है।।
कोई अंतिम बाजी मार गया।
कोई उम्दा रह भी हार गया।।
हर साल समर यह चलता है।
हल ऐसे ही तो निकलता है।।
अब अगले की तैयारी करो।
फिर नये जोश से उसमें लड़ो।।
इस जंग से यों घबराना क्या।
एक हार से यों पछताना क्या।।
अगली मिहनत काम आएगी।
वह निश्चित विजय दिलाएगी।।
जीत का सपना सभी सजाते हैं।
पर मिहनत अनुसार फल पाते हैं।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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