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सुख दुख

सुख दुख

जय प्रकाश कुवंर
काहे मन मुरझाइल बा।
हंसी कहाँ हेराइल बा।।
कतना हंसमुख चेहरा रहल।
एक झटका में कैसे ढहल।।
सुख में भी उछाह ना क‌इनी।
दुख मे भी परवाह ना क‌इनी।।
दूनों के एक जैसा सहनीं।
हरदम र‌उआ हंसते रहनी।।
सुख दुख दुनों साथी ह ऽ।
केहू सराती त केहू बराती ह ऽ।।
दूनों के र‌उआ गले लगाईं।
तनिको मत र‌उआ घबराईं।।
ओकरे जीवन पार लगेला।
सुख दुख जे समान समझेला।। 
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