पी ओ के और दो जून की रोटी
बंद कर तू आतंकी वारदातें ,बंद कर तू यह दहशतगर्दी ।
तेरा व्यवहार साबित करता ,
तुममें भरा पड़ा यह नामर्दी ।।
छुपकर करते हो वारदातें ,
छुपकर करते हो नरसंहार ।
मानवता से तुझे प्यार नहीं ,
तेरे जीवन को है धिक्कार ।।
बंद कर क्रूरता तू अपनी ये ,
तू पी को तो ओ के कर ले ।
पी मिंस प्यार ओ के करके ,
दो जून की रोटी तो भर ले ।।
पी ओ के ही है पी ओ के ये ,
पीओके बिन पी ओके नहीं ।
खैर नहीं कभी यह उसका ,
आतंकी कदम जो रोके नहीं ।।
पीओके दो या पीएके दे दो ,
देना तो तुमको अब ये पड़ेगा ।
नहीं समझा भारत की बातें ,
स्वयं भी तू जमीं में ही गड़ेगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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