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पिता मेरी मुस्कान

पिता मेरी मुस्कान

बैठ पिता के कंधों पर मैं राजा बन जाता था।
सारी दुनिया देख नजारा मंद मंद मुस्कांता था।

जिनकी उंगली पकड़ पकड़ हमने चलना सीखा।
पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया भाग्य सारा लिखा।

जिनकी एक आहट से सारे घर में दौड़े आते।
सपनों का सामान जुटाकर लदे हुए सब लाते।

वटवृक्ष की ठंडी छाया पिता है प्रेम का झरना।
खुशियों का खजाना है ख्याल सबका धरना।

जब रूठे पिता मनाते क्या क्या चीजें घर लाते।
खेल खिलौने विविध भांती पाकर हम इतराते।


बच्चों के संग बच्चे बन हंस हंसकर वो बदलाते।
कथा कहानी परियों की पिता रोज हमें सुनाते।

सदा सादगी की मूरत पिता संघर्षों की परिभाषा।
पिता का साया सिर पर हो पूरी होती हर आशा।


पिता संग हो जीवन सफर में हौसला बढ़ जाता।
रखते सिर पर हाथ-पिता कीर्तिमान गढ़ जाता।


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान 
रचना स्वरचित व मौलिक है
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