पितृ छाया,स्नेह की माया
कठोर छवि अनुशासन प्रिय,अंतर प्रवाह विमल अर्णव ।
त्याग संघर्ष प्रतिमूर्ति,
अनंत अत्युत्तम प्रणव ।
सृजन उत्थान पथ पर,
नित्य नैतिक धर्म निभाया ।
पितृ छाया,स्नेह की माया ।।
स्नेहगार दया उद्गम स्थल,
सृष्टि पटल अप्रतिम छवि ।
दबंग संस्कारी स्वाभिमानी,
आत्मबल ओज सम रवि ।
ब्रह्मा विष्णु महेश सरिस,
दिव्य आदर्श रूप दिखलाया।
पितृ छाया,स्नेह की माया ।।
अद्भुत तेज पुंज उज्ज्वल,
जग ज्योत अखंडित ।
हर युग अति गुणगान,
आदर महिमा शीर्ष मंडित ।
ऊर्जस्वित कर प्राण सकल ,
शक्ति भक्ति भाव जगाया ।
पितृ छाया,स्नेह की माया ।।
संस्कृति संस्कार धर्म रक्षक,
परंपरा मर्यादा युक्त चरित्र ।
नैतिक सात्विक पथिक,
व्यक्तित्व कृतित्व पवित्र ।
अथक श्रम उत्सर्ग साधना,
सदा प्रणत पथ दिखलाया ।
पितृ छाया,स्नेह की माया ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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