पितृ दिवस
जो इत्र बने पवित्र बने ,पुत्र जीवन का मित्र बने ।
चमकाए जो पुत्र ललाट ,
वही तो पुत्र का पित्र बने ।।
पिता रहते सुमन बनकर ,
पुत्र को इत्र बना देता है ।
पुत्र होता जैसे ही बड़ा ,
पिता मित्र बना लेता है ।।
पिता तो पिता ही होता ,
हर गुण उसे सिखाता है ।
अनुभव में सीखा उसने ,
वही पुत्र को दिखाता है ।।
आया जो पुरखों से चल ,
वही रिवाज अपनाता है ।
अपने धर्म की वही बातें ,
पिता पुत्र को बताता है ।।
दया उपकार व अहिंसा ,
सनातन धर्म को भाता है ।
उसी मार्ग पर चलने हेतु ,
पुत्र को उस मार्ग लाता है ।।
माॅं होती संस्कार जननी ,
पिता कर्म धर्म के पहचान ।
पिता हैं व्यवहार ये बताते ,
पुत्र को देते सकुशल ज्ञान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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