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मासिक महावाणी स्मरण सह काव्य गोष्ठी का भव्य आयोजन निराला निकेतन में संपन्न

मासिक महावाणी स्मरण सह काव्य गोष्ठी का भव्य आयोजन निराला निकेतन में संपन्न

  • आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की प्रतिमा पर दी गई काव्यांजलि, राष्ट्र, समाज और नारी शक्ति पर केंद्रित रचनाओं ने बटोरी सराहना
पटना। साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना के केन्द्र निराला निकेतन में आज एक विशेष साहित्यिक आयोजन हुआ। यहाँ आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की प्रतिमा स्थल पर मासिक महावाणी स्मरण सह काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में देशभर के रचनाकारों एवं साहित्यप्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रसिद्ध साहित्यकार अंजनी कुमार पाठक द्वारा आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के कालजयी गीत "रेत पर जो लिख रहा हूँ, धार उसको मेट देगी..." के सुमधुर गायन से हुई। गीत ने सभी श्रोताओं को भावविभोर कर दिया और कार्यक्रम का भावनात्मक आरंभ हुआ।
इसके पश्चात काव्य गोष्ठी का शुभारंभ हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात कवि सत्येंद्र कुमार 'सत्येन' ने की तथा संचालन की जिम्मेदारी सहज कुमार ने निभाई।
गोष्ठी में जिन कवियों ने अपनी रचनाओं से समां बांधा, उनमें कई चर्चित नाम शामिल रहे।
डॉ. उषा किरण श्रीवास्तव ने "धर्म पूछ कर तुमने धोया बहन-बेटियों का सिन्दूर, गिन-गिन कर हम बदला लेंगे, चल पड़ा ऑपरेशन सिन्दूर..." जैसी नारी शक्ति से ओत-प्रोत ओजपूर्ण कविता के माध्यम से जोरदार प्रभाव छोड़ा।
डॉ. संगीता सागर ने देशभक्ति की भावनाओं से परिपूर्ण पंक्तियों में शहीदों को नमन करते हुए कहा – "किन शब्दों में दूँ श्रद्धांजलि उनको, जिनके रक्त से हुआ पहलगाम लाल।"
किरण सोनी 'न' ने प्रकृति की सुन्दरता को दर्शाते हुए पढ़ा – "ये हरियाली, ये खुली वादियाँ, मुझे अच्छा लगता है।"
अंजनी कुमार पाठक ने कहा – "एकजुट रहना चाहिए वतन के लिए, यह जान भी न्योछावर हो वतन के लिए।"
उमेश राज की रचना "ये भारत की भारती का हुँकार है, ऑपरेशन सिन्दूर नारी शक्ति का ललकार है" ने श्रोताओं में जोश भर दिया।
सहज कुमार की प्रस्तुति "हम वीर सिपाही चले सड़क पर..." ने आमजन के संघर्ष और संकल्प को स्वर दिया।
प्रमोद नारायण मिश्र ने समाज की विचारधाराओं पर कटाक्ष करते हुए कहा – "तेरी सोच, मेरी सोच मिल नहीं सकती।"
अशोक भारती ने विविध कलाओं में भारत की महानता को रेखांकित करते हुए पढ़ा – "चाँद-तारों में हम, सब विधाओं में हम।"
राजीवेन्द किशोर की रचना "किसने बासुरी बजायी..." ने श्रोताओं को भावनात्मक गहराई में ले गया।
अरुण कुमार 'तुलसी' ने अतीत और वर्तमान की कड़ी जोड़ते हुए प्रस्तुत किया – "अतीत के मर्म स्थल से वर्तमान के पटल पर।"
डॉ. हरि किशोर सिंह ने बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए पढ़ा – "फागुन आया, संग-संग उल्लास लाया, उमंग लाया।"
गोष्ठी के अध्यक्ष सत्येंद्र कुमार 'सत्येन' ने अपनी प्रसिद्ध कविता "गरीबनी के बेटियाँ चरावेली बकरियाँ..." सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही बटोरी और तालियों की गड़गड़ाहट से मंच गूंज उठा।
कार्यक्रम के अंत में नागरिक मोर्चा के महासचिव मोहन सिन्हा ने सभी अतिथियों, कवियों और उपस्थित श्रोताओं का आभार प्रकट किया।
इस आयोजन ने साहित्य प्रेमियों को जहां एक ओर राष्ट्रीय चेतना से जोड़ा, वहीं दूसरी ओर मानवीय संवेदनाओं, प्रकृति प्रेम, नारी सम्मान और सामाजिक सरोकारों को भी मुखर स्वर प्रदान किया। निराला निकेतन की इस मासिक काव्यगोष्ठी ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि साहित्य समाज का सजग प्रहरी है।
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