"दृष्टि का चमत्कार"
दृष्टि केवल देखने का माध्यम नहीं, यह जीवन को समझने, गढ़ने और बदलने की शक्ति है। एक सुंदर, करुणामय दृष्टि मौन को भी बोलने की प्रेरणा देती है—जहाँ शब्द नहीं पहुँचते, वहाँ दृष्टि संवाद करती है। जब हम किसी को स्नेह से देखते हैं, तो वह मौन व्यक्ति भी अपने अंतर्मन के भावों को प्रकट करने लगता है।
यही दृष्टि जब करुणा से भरी होती है, तो विरोध में भी समर्पण की संभावनाएँ जगती हैं। जहाँ तर्क और वाद-विवाद असफल हो जाते हैं, वहाँ एक कृपालु दृष्टि चमत्कार कर जाती है। वह संबंधों में टूटन नहीं, सेतु बनाती है।
परन्तु जब यही दृष्टि क्रोध और कटुता से भर जाती है, तो सौंदर्य भी कुरूप प्रतीत होता है। वस्तु वही रहती है, पर दृष्टिकोण बदलते ही उसका अर्थ बदल जाता है।
इसलिए जीवन में दृष्टि को सजग और स्नेहिल बनाना ही सच्चा आत्मविकास है। क्योंकि संसार जैसा है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे कैसे देखते हैं।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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