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व्याकुल आत्मा की पुकार

व्याकुल आत्मा की पुकार

यह स्वर मेरे अंतःकरण का है,
व्याकुल आत्मा की मौन पुकार।
ना कोई शब्दों की सीमा यहाँ,
ना कोई तर्क, ना कोई प्रमाण।


यह तो प्राणों से रिसती अनुभूति है,
जैसे संध्या की संकोच भरी चुप्पी में
किसी मेघ का अकथ क्रंदन हो,
या स्वप्न की सीमा पर
विलीन होती चेतना की छाया।


यदि इसे मिथ्या समझोगे,
तो भटकोगे समय की निर्जन गलियों में,
जहाँ कोई दिशा नहीं,
सिर्फ़ अस्तित्व का भ्रम है।


यदि इसे सत्य समझोगे,
तो बहकोगे किसी अज्ञात आलोक की ओर,
जहाँ तर्क-शून्य भावनाएँ
हृदय को जलाते दीप बन जाएँगी।


पर क्या करे कोई,
जब जीवन स्वयं ही एक उच्छ्वास है,
भटकना एवं बहकना ही हैं
इस नश्वर यात्रा की संगीनी छाँह (छाया)।


तभी तो यह संगीत,
ना किसी वीणा से उपजा,
ना किसी श्रुति में बँधा,
केवल मेरी व्याकुल आत्मा का
अदृश्य आलाप है…
जो स्वयं ईश्वर की भाषा में बुदबुदाता है।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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