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आइसोलेशन ( अलग करना या एकांत )

आइसोलेशन ( अलग करना या एकांत )

जय प्रकाश कुंवर
सुबह सुबह रमेश बाबू के घर के सामने कुछ लोगों की भीड़ इकट्ठी थी। लोग आपस में फुसफुसाते हुए कह रहे थे कि इधर कुछ महीनों से रमेश बाबू को किसी ने देखा नहीं था। दो चार दिनों से रमेश बाबू के पड़ोसियों को उनके बंद घर से दुर्गन्ध आने जैसा महसूस होने पर उन्होंने पुलिस और कारपोरेशन वालों को खबर दिया। आज सुबह दोनों विभाग के लोग आए थे और घर खोलकर रमेश बाबू की छानबीन की तो एक कमरे में उनकी मृत लाश पड़ी हुई थी। उनकी सड़ी हुई लाश को विभागीय कारवाई पुरा कर वो ले गए और जब उनके आश्रितों को खबर देने के बावजूद भी कोई नहीं आया तो सरकारी स्तर पर उनके शरीर का दाह संस्कार कर दिया।
रमेश बाबू, जो एक सरकारी पदाधिकारी थे, उन्होंने अपनी इमानदारी की कमाई से अपने सभी बच्चों को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया था और अब सभी बच्चे अपने अपने नौकरी पेशे में लगे हुए थे। जैसे जैसे बच्चों की शादी वो करते गए वैसे ही कुछ कुछ अंतराल पर सभी छोटे छोटे पारिवारिक अनबन के कारण अपने परिवार के साथ एक एक कर उनका साथ छोड़ अपनी गृहस्थी अलग बसाते चले गए। अपनी इमानदारी की कमाई से जीवन में वो दो ही काम कर पाए थे। एक था अपने बच्चों के पालन पोषण और शिक्षा पर खर्च करना और उन्हें योग्य बनाना तथा दुसरा किसी तरह कष्ट झेलकर भी अपने परिवार के लिए एक आश्रम बनाना। ये दोनों ही काम अपने नौकरी से सेवा निवृत्ति के पहले ईश्वर की कृपा से वो कर पाये। सेवा निवृत्ति के कुछ साल बाद उनकी पत्नी ने भी उनका साथ छोड़ दिया और बिमारी के कारण वो ईश्वर के श्री चरणों में परमधाम को चली गईं। अब अपने अपने घर में दूर रहते हुए भी उनके बच्चों की निगाह इस घर की तरफ केवल इसलिए लगी रहती थी कि कब उनके पिता की भी मृत्यु हो, ताकि वो इस घर को बेच कर पैसे का आपस में भाग बंटवारा करलें। उनके लिए शहर के मशहूर इलाके में स्थित उनके पिता का यह घर किसी खजाने से कम नहीं था। अपने पिता की देखभाल और एकाकी जीवन से किसी को भी कुछ लेना देना नहीं रह गया था।
पत्नी के गुजर जाने के बाद अब रमेश बाबू अपने घर में अकेले रह गए थे और बुढ़ापे के कारण शरीर भी अस्वस्थ रहने लगा था । सेवा निवृत्ति के बाद पेंशन नहीं मिलने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं रह गई थी कि वो नौकर चाकर रख कर अपना काम चला सकें। अतः उनको अपना सारा काम खुद ही करना पड़ता था। कमजोर शरीर से ज्यादा कुछ नहीं हो पाता था, अतः जीने के लिए जो कुछ भी संभव हो रहा था बना खा ले रहे थे। जिन बच्चों की परवरिश के लिए उन्होंने अपने जीवन का सब कुछ खर्च कर दिया था, वो अब अपने खुद के पारिवारिक जीवन में इतने व्यस्त और खुशहाल थे कि उन्हें अपने बुढ़े पिता के तरफ झांकने का भी फुर्सत नहीं था। कभी कभार रमेश बाबू से मिलने उनके कोई मित्र या पड़ोसी आ जाया करते थे। इस तरह लड़खड़ाते हुए रमेश बाबू की जिंदगी एक एक दिन गुज़र रही थी।
एक दिन उनके एक पड़ोसी आए और बताया कि रमेश बाबू आप बाहर निकलिए तो मास्क से अपना मुंह नाक ढंक कर निकलिये क्योंकि देश और इस शहर में भी कोरोना महामारी फैला हुआ है। किसी कोरोना ग्रसित के सम्पर्क में आने पर आप को भी यह रोग हो जाएगा और आपको आइसोलेशन में डाक्टरों के सुझाव के मुताबिक कमसे कम चौदह दिन के लिए चला जाना पड़ेगा। फिर आप किसी से मिलजुल नहीं पायेंगे। पड़ोसी की बात सुनकर रमेश बाबू अनचाही हंसी जोर जोर से हंसने लगे। उन्होंने अपने पड़ोसी से कहा कि यह कोरोना महामारी तो आज कुछ समय से हमारे देश और शहर में फैला है, जिसके कारण कुछ लोगों को आइसोलेशन में चौदह दिनों के लिए जाना पड़ रहा है, तथा कुछ लोगों की मौत भी इस कारण से हो जा रही है। लेकिन पारिवारिक कलह और अशांति नाम की एक उससे भी बड़ी महामारी हमारे देश, शहर और समाज में बिगत कुछ वर्षों से फैली हुई है, और दिनों दिन बड़ती ही जा रही है, जिस महामारी के चलते हमारे जैसे अनेकों बुजुर्ग उनके आश्रितों के जिंदा रहते हुए भी, आज आइसोलेशन की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। आज उनकी जिंदगी एकांत और दुभर हो गई है। आज उनके पास न तो कोई आता जाता है और न कोई उनके लिए चिंता करने वाला है। आज वो दो रोटी के लिए लालायित रह गए हैं। आज वो इस एकाकी जीवन में घुट घुट कर मर रहे हैं। आज हमारे समाज में बुजुर्गों की यही दयनीय स्थिति है।
रमेश बाबू जैसे बुजुर्ग व्यक्ति अपने घर में कोरोना महामारी के चलते नहीं, बल्कि अपनों के द्वारा अकेले छोड़ दिये जाने जैसे महामारी के चलते अकेले जिंदगी से जुझते जुझते धीरे धीरे शक्तिहीन होते चले गए और एक दिन देखरेख के अभाव में अपने ही घर में आइसोलेशन की जिंदगी बिताते हुए उपर चले गए। उनके सड़े हुए शरीर को कारपोरेशन वालों और प्रशासन के लोगों ने पंचतत्व में मिलाया, वो भी बिना मुखाग्नि दिये गये। ऐसा संयोग केवल कोरोना महामारी के चलते मृत लोगों के साथ ही हुआ करता था , जैसा कि देश में देखा गया था। 
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