मानव के गुण दोष
मानवता के मानव को मैंगुण सिखलाता हूँ।
संसारिक ये कालचक्र को
मानव को समझता हूँ।
वैर-भाव और दोषों को
बस दिलसे मिटा लो तुम।
साधुव्हिक जीवन जीने के
बारे में सोच बस तुम।।
राग-द्ववेश और मोह-माया के
मैं भेद बताता हूँ।
संसारिक व्यवहारिक जीवन की
मैं कला समझता हूँ।
समझ गये तो सरल हो जायेगा
ये तेरा मानव जीवन।
और मानव जीवन जीने का
फिर फल मिल जायेगा।।
मानव जन्म फिर से मिलना
हे मानव बहुत कठिन है।
कर्म तुम्हें अब इस जीवन में
बस अच्छे ही करना है।
सोच विचार करके ही अब
कर्म तुझे करना है।
सफल मेरा ये जीवन हो
यही कामना बस भाना है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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