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अजय मेरु नाम की पुनर्स्थापना की मांग को मिला जनसमर्थन: धर्म चंद्र पोद्दार के ट्वीट ने जगाई सांस्कृतिक चेतना

अजय मेरु नाम की पुनर्स्थापना की मांग को मिला जनसमर्थन: धर्म चंद्र पोद्दार के ट्वीट ने जगाई सांस्कृतिक चेतना

  • अजमेर को दोबारा 'अजय मेरु' कहे जाने की उठी मांग, सोशल मीडिया पर मचा जनचेतना का विस्फोट

भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और ऐतिहासिक पहचान की बहाली की दिशा में एक नई पहल ने देशभर में गूंज पैदा कर दी है। भारतीय जन महासभा के अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार द्वारा राजस्थान के मुख्यमंत्री के नाम किया गया एक ट्वीट अब जनचर्चा का विषय बन गया है। इस ट्वीट में उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर अजमेर का नाम पुनः "अजय मेरु" किए जाने की मांग रखी है।

ट्वीट में श्री पोद्दार ने स्पष्ट किया कि यह नगर मूलतः राजा अजय पाल चौहान द्वारा स्थापित किया गया था, जिसे उन्होंने "अजय मेरु" नाम दिया था। कालांतर में इस ऐतिहासिक नगर का नाम परिवर्तित कर "अजमेर" कर दिया गया, जिससे इसकी प्राचीन सांस्कृतिक पहचान लुप्तप्राय होती गई। अब समय आ गया है कि इस ऐतिहासिक स्थल को उसके मूल गौरव और नाम के साथ पुनर्स्थापित किया जाए।

ऐतिहासिक संदर्भ: अजय पाल चौहान और अजय मेरु की प्रतिष्ठा


राजा अजय पाल चौहान, जिनका नाम भारतीय इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान रखता है, 11वीं शताब्दी के महान शासकों में गिने जाते हैं। उन्होंने अर्धवृत्ताकार पर्वतीय क्षेत्र में स्थित एक शक्तिशाली दुर्ग के रूप में अजय मेरु की स्थापना की थी, जो बाद में राजपूतों के चौहान वंश की राजधानी बना। यह नगर धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

इतिहासकार मानते हैं कि ‘अजय मेरु’ का शाब्दिक अर्थ है – विजयी पर्वत। यह नाम उस समय की भौगोलिक संरचना, राजनीतिक शक्ति और आत्मगौरव का प्रतीक था। समय बीतने के साथ जब विदेशी शासकों और मुगल साम्राज्य का प्रभाव बढ़ा, तो न केवल सांस्कृतिक स्वरूप बदला, बल्कि अनेक ऐतिहासिक नगरों के नाम भी विकृत कर दिए गए। अजय मेरु भी इसी प्रक्रिया का शिकार हुआ और उसका नाम 'अजमेर' कर दिया गया।

ट्विटर से उठी क्रांति की लहर


धर्म चंद्र पोद्दार द्वारा किया गया यह ट्वीट मात्र एक मांग न होकर एक सांस्कृतिक पुनरुद्धार का स्वरूप बनता जा रहा है। उन्होंने ट्वीट में लिखा:


“राजा अजय पाल चौहान द्वारा स्थापित ऐतिहासिक नगर 'अजय मेरु' को कालांतर में 'अजमेर' बना दिया गया। राजस्थान सरकार से आग्रह है कि इसे पुनः 'अजय मेरु' नाम से सम्बोधित किया जाए।”

ट्वीट की प्रतिलिपि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला तथा राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को भी भेजी गई है। यह गंभीरता और संवेदनशीलता दर्शाता है कि यह केवल एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना की आवाज है।

सोशल मीडिया पर जनसमर्थन की सुनामी


पोद्दार जी के ट्वीट को देखते ही देखते हजारों लोगों ने समर्थन देना शुरू कर दिया। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह मुद्दा ट्रेंड करने लगा। लोगों ने न केवल रीपोस्ट किया बल्कि कई जागरूक नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसके पक्ष में तर्क, तथ्य और इतिहास साझा करते हुए एक विशाल जनमत तैयार कर दिया।

रिपोस्ट करने वालों में देश के प्रतिष्ठित नाम जैसे:

  • सुखेन मुखोपाध्याय (वरिष्ठ सामाजिक विश्लेषक),मधु सिन्हा (प्रसिद्ध स्तंभकार),श्रवण देबूका (सांस्कृतिक कार्यकर्ता),ओम प्रकाश अग्रवाल (इतिहास प्रेमी),रवि शंकर झा (विधि विशेषज्ञ),संजय अग्रवाल ‘बंसल’ (उद्योगपति एवं समाजसेवी)
इन सबने अपने-अपने क्षेत्रीय प्रभाव का प्रयोग करते हुए इस मांग को राष्ट्रव्यापी समर्थन प्रदान किया।
प्रतिक्रियाएं और विचार

सुखेन मुखोपाध्याय ने अपने रिपोस्ट में लिखा:


“इतिहास के साथ न्याय तभी होगा जब हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों के नाम और स्वरूप को पुनः स्थापित करेंगे। 'अजय मेरु' का नाम वापस लाना हमारी आत्मा की पुकार है।”

मधु सिन्हा ने लिखा:


“नाम केवल पहचान नहीं, वह आत्मगौरव का प्रतीक होता है। जब तक हम अपने मूल नामों को बहाल नहीं करते, तब तक हमारा इतिहास अधूरा रहेगा।”

ओम प्रकाश अग्रवाल ने एक साक्षात्कार में कहा:


“राजस्थान के अनेक नगरों के नाम कालांतर में बदले गए। सरकार को चाहिए कि वह ऐतिहासिक नामों की पुनर्स्थापना को नीति का हिस्सा बनाए।”

सांस्कृतिक पुनरुद्धार की लहर

धर्म चंद्र पोद्दार की इस मांग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतवर्ष में ऐतिहासिक सत्य और सांस्कृतिक पहचान को लेकर एक नई जागरूकता जन्म ले चुकी है। यह सिर्फ एक शहर के नाम की बात नहीं, यह उस सम्पूर्ण सोच और चेतना की बात है जो हमारी सभ्यता की नींव रही है।

पिछले कुछ वर्षों में भी देश में कई नगरों के नाम बदले गए हैं, जैसे:

इलाहाबाद → प्रयागराज

फैजाबाद → अयोध्या

मुगलसराय → पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर
इन नाम परिवर्तनों को जहां एक ओर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा गया, वहीं जनमानस में इसके पीछे छिपी आत्मिक चेतना को भी व्यापक समर्थन मिला।

सरकार से अपेक्षाएं

अब सभी की निगाहें राजस्थान सरकार पर टिकी हैं। क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (या वर्तमान मुख्यमंत्री) इस मांग को गंभीरता से लेंगे? क्या सरकार ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर 'अजय मेरु' नाम की पुनर्स्थापना को मूर्त रूप देगी?

धर्म चंद्र पोद्दार के इस ट्वीट ने निश्चित ही एक नई बहस को जन्म दिया है – क्या हमें अपने शहरों, गांवों, नदियों और पर्वतों के मूल नामों की ओर लौटना चाहिए? क्या यह मात्र प्रतीकात्मक मांग है या आत्म-संमान की आवश्यकता?
निष्कर्ष: एक चेतना की पुकार

‘अजय मेरु’ केवल एक नाम नहीं, यह हमारी परंपरा, संस्कृति और अस्तित्व का प्रतीक है। इसे पुनः स्थापित करने की मांग केवल एक ट्वीट भर नहीं, एक जनआंदोलन का बीज है। अगर सरकार समय रहते इस पर कदम उठाती है, तो यह भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय सिद्ध होगा।

भारतीय जन महासभा का यह प्रयास यह साबित करता है कि राजनीति केवल सत्ता का नहीं, सांस्कृतिक चेतना और जनसम्मान का भी माध्यम बन सकती है। धर्म चंद्र पोद्दार के नेतृत्व में यह पहल आने वाले समय में देश के अनेक क्षेत्रों में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के बीज रोपने में सहायक सिद्ध हो सकती है।

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