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बेबस होकर मत ऑंसू बहाओ

बेबस होकर मत ऑंसू बहाओ

क्यों गॅंवा रही हो ये धैर्य तुम ,
हृदय में तुम ढाढ़स तो लाओ ।
चाट बैठेंगे तुम्हें ये दुनियावाले ,
बेबस होकर मत ऑंसू बहाओ ।।
क्यों दी है तू ये दिल किसी को ,
निज दिल खिलौना बना दिया ।
प्रतिष्ठा का तूने बिस्तर करके ,
मातपिता दिल बौना बना दिया ।।
अब रोने से यह होता क्या है ,
जब धन ही सारा ये लूट गया ।
दिल देते वक्त भी तू सोची नहीं ,
जब खिलौना भी ये टूट गया ।।
मातपिता को दी नहीं तवज्जो ,
प्रतिष्ठा को बिछौना बना दिया ।
मिटा दी प्रतिष्ठा तूने ये धूल में ,
मातपिता आधीपौना बना दिया।।
समझूॅं कैसे भाग्य दुर्भाग्य तेरा ,
गृहत्याग तूने गौना बना दिया ।
खरीदा नहीं जाता पैसे से दिल ,
तूने उसे ही खिलौना बना दिया।।
अब भी सावधानी तुम बरतो ,
व्यर्थ समय अब मत ये गॅंवाओ ।
समझा लो निज टूटे दिल को तुम ,
बेबस होकर मत ऑंसू बहाओ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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