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लेखनी , कलम

लेखनी , कलम

हाय री लेखनी तेरी चाल ,
पल में लाती चाल भूचाल ।
किसी को बनाती बदहाल ,
किसी को बनाई खुशहाल ।।
तुझमें शक्ति भरी है इतनी ,
तू ही सबको यह प्यार दे ।
जड़ें जमाईं सत्तापक्ष को भी ,
जड़ से ही उसे उखाड़ दे ।।
चना को तुम नाच करा दे
नाच को बना देती है चना ।
कभी सबसे तू प्यार बढ़ाती ,
कभी बढा़ देती घृणा घना ।।
पलभर में राई पर्वत बनता ,
पलभर में पर्वत बनता राई ।
किसी को गद्दी तू है बैठाती ,
किसी को गिराती है खाई ।।
कोई जीत का जश्न मनाता ,
कोई लेता है खूब अंगड़ाई ।
किसी को तू मनोरंजन देती ,
किसी को देती तू भरमाई ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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