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हर असंभव का हल — कठिन परिश्रम

हर असंभव का हल — कठिन परिश्रम

ca संजय झा
हर असंभव काम भी मुमकिन हो जाता है,
जब इंसान खुद से लड़ने को तैयार हो जाता है।
कठिन परिश्रम की आग जब दिल में जलती है,
तो किस्मत की लकीर भी बदल जाती है।

राह चाहे कितनी भी मुश्किल हो जाए,
परिश्रम से हर मंज़िल आसान हो जाए।
नामुमकिन कुछ भी नहीं इस ज़माने में,
बस मेहनत शर्त है हर फ़साने में।

हौंसले बुलंद हों और इरादे नेक,
तो पत्थर भी बन जाएं रास्तों के मेहक।
कठिन परिश्रम से चमत्कार रचाए जाते हैं,
असंभव काम भी हकीकत बनाए जाते हैं।
जो थक कर बैठ जाते हैं, वो मंज़िल नहीं पाते,
जो चलते रहते हैं, वो ही इतिहास बनाते।
हर असंभव को मुमकिन कर दिखाया है,
जिसने भी कठिन परिश्रम को अपनाया है।

पसीने की धार जब माथे से बहती है,
किस्मत की ज़मीं भी उस पर झुकती है।
कठिन परिश्रम ही वो मंत्र है जीवन का,
जो असंभव को भी संभव करती है साधना।

||| शुभ प्रभात |||
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