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शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति , सामाजिक संरचना और विवाह-नियम
डॉ राकेश दत्त मिश्र
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है। विशेष रूप से, साम्ब पुराण में उल्लेख है कि भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था, जिसे शाकद्वीप के ब्राह्मणों ने अपने आध्यात्मिक चिकित्सा से ठीक किया। इससे प्रसन्न होकर, भगवान ने उन्हें जम्बूद्वीप में सम्मानपूर्वक बुलवाया और मगध क्षेत्र में बसाया। इन ब्राह्मणों को अठारह कुलों में विभाजित किया गया, और प्रत्येक कुल को चार-चार गांव (पुर) दिये गये, जिससे कुल बहत्तर पुर बने। यह 'पुर' व्यवस्था शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की सामाजिक संरचना का आधार बनी। भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में शाकद्वीपीय ब्राह्मण एक विशिष्ट और सम्मानित समुदाय हैं। इन्हें 'भोपा', 'मग ब्राह्मण', या 'शाकद्वीपीय' भी कहा जाता है। शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति, जीवनचर्या, कर्मकाण्ड और विशेष रूप से विवाह-नियमों का उल्लेख विभिन्न पुराणों, उपपुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। साम्ब पुराण, जो भगवान सूर्य के उपासना-विधान तथा सूर्योपासकों की परंपराओं का प्रधान ग्रंथ है, शाकद्वीपियों के विवाह-नियमों को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के विवाह-नियम एक विशिष्ट सामाजिक और धार्मिक संरचना का परिचायक हैं, जो उनके सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं को दर्शाते हैं। इन नियमों की जड़ें साम्ब पुराण सहित अन्य पुराणों में मिलती हैं, जो शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति, सामाजिक संगठन और विवाह संबंधी आचार-संहिता को स्पष्ट करते हैं।
विवाह-नियम: 'पूर' और 'गोत्र' की भूमिका
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के विवाह-नियमों में 'पूर' और 'गोत्र' का विशेष महत्व है।
पूर (Pur): यह रक्त संबंध को दर्शाता है। एक ही पूर में विवाह पूर्णतया निषिद्ध है, जिससे रक्त संबंधों के भीतर विवाह से बचा जा सके।
गोत्र (Gotra): यह गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाता है। किन्हीं अपरिहार्य परिस्थितियों में एक ही गोत्र में विवाह किया जा सकता है, लेकिन यह सामान्यतः वर्जित है।
इस प्रकार, शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में विवाह के लिए पूर और गोत्र दोनों का मिलान आवश्यक होता है, जिससे सामाजिक और धार्मिक नियमों का पालन सुनिश्चित हो सके।
साम्ब पुराण में विवाह-नियमों का उल्लेख
साम्ब पुराण में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की उत्पत्ति और उनकी सामाजिक संरचना का वर्णन मिलता है, लेकिन विवाह-नियमों का विस्तृत विवरण अन्य पुराणों और ग्रंथों में भी मिलता है। उदाहरण के लिए, ब्रह्म पुराण, भविष्य पुराण, विष्णु पुराण, पद्म पुराण, वायु पुराण, और श्रीमद् भागवत पुराण में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के इतिहास और उनके सामाजिक नियमों का उल्लेख है।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों का गैर-शाकद्वीपीय से विवाह
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों में गैर-शाकद्वीपीय से विवाह सामान्यतः वर्जित है। उनकी सामाजिक संरचना और धार्मिक नियमों के अनुसार, विवाह केवल शाकद्वीपीय समुदाय के भीतर ही होना चाहिए, जिससे उनकी परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा हो सके। हालांकि, आधुनिक समय में कुछ अपवाद मिल सकते हैं, लेकिन पारंपरिक दृष्टिकोण में ऐसे विवाहों को स्वीकार नहीं किया जाता।
शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के विवाह-नियम उनकी सामाजिक और धार्मिक संरचना का अभिन्न हिस्सा हैं। 'पूर' और 'गोत्र' की व्यवस्था उनके विवाह-नियमों का आधार है, जिससे सामाजिक समरसता और धार्मिक अनुशासन बना रहता है। साम्ब पुराण और अन्य पुराणों में इन नियमों का उल्लेख उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है। गैर-शाकद्वीपीय से विवाह की वर्जना उनके सांस्कृतिक संरक्षण की भावना को प्रकट करती है।
साम्ब पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के विवाह नियम अत्यंत अनुशासित, वैदिक और सूर्य-उपासना प्रधान होते हैं। इनकी विवाह-पद्धति में:
- वैदिक मंत्रों की प्रधानता,
- गोत्र-प्रवर की शुद्धता,
- धार्मिक उद्देश्य की प्रधानता,
- स्त्री के अधिकार और ज्ञान का महत्व,
- सूर्योपासना की केंद्रीय भूमिका,
- आदि विशेषताएँ प्रमुख हैं।
इस परंपरा का पालन आज भी गुजरात, बिहार, झारखंड, राजस्थान, और महाराष्ट्र के शाकद्वीपीय ब्राह्मण समुदायों द्वारा किया जाता है। यह विवाह-पद्धति भारतीय संस्कृति में एक सजीव और अनूठा उदाहरण है जहाँ धर्म, ज्ञान, संस्कार और विज्ञान का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।
संदर्भ ग्रंथ
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