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गैर जरूरी परामर्श

गैर जरूरी परामर्श

    जय प्रकाश कुवंर
लड़का लड़की का शादी ब्याह महज उनके दो शरीरों और दो आत्माओं का केवल मिलन नहीं होता है, बल्कि यह दो परिवारों , दो परिवेशों और दो संस्कारों का भी मिलन होता है। शादी की उम्र होने के पहले लड़का लड़की दोनों अलग अलग परिवारों और अलग अलग परिवेशों में पले बढ़े होते हैं। बचपन से लेकर स्कूल कालेज जाने की उम्र तक उनकी प्रारंभिक शिक्षा और संस्कार पहले उनको अपने परिवार में ही परिवार के बुजुर्गों द्वारा सिखाया जाता है। ये शिक्षा और संस्कार उनके अलग अलग उनके परिवार के अनुसार होते हैं। यह जरूरी नहीं कि हर परिवार का परिवेश और संस्कार एक जैसा ही हो। बहुत सारे परिवार सम्मिलित परिवार होते हैं, तो बहुत परिवार एकल होते हैं। बहुत परिवार गाँव में रहते हैं तो कुछ परिवार शहर में रहते हैं। अतः स्वाभाविक रूप से उनके आचरण और व्यवहार गाँव और शहर के अनुरूप ही होगा।
लड़का लड़की की शादी चाहे गाँव से शहर में हो, अथवा शहर से गाँव में हो, हर हालात में लड़की को ही अपना घर छोड़ना पड़ता है। वह शादी के बाद अपने माता पिता के घर को छोड़कर अपने ससुराल में जाती है। इस क्रम में उसका न केवल अपने माता पिता का घर , जहाँ और जिस परिवेश में वह पैदा हुई और पली बढ़ी है, छोड़ना पड़ता है, बल्कि वह एक अपरिचित घर और नये परिवेश में प्रवेश करती है। इस नये घर और परिवेश में उसके लिए अपने पति के साथ ही सारे लोग अनजाने और गैर पहचाने होते हैं। इस नये परिवार का रहन सहन और दिनचर्या एवं संस्कार आदि भी कुछ अलग होता है। अतः लड़की को बड़े धैर्य और सुझबुझ से काम लेना पड़ता है और नये परिवार में उनके अनुसार ढलना पड़ता है। यही वह समय होता है जो उसके सुख दुख का निर्णायक घड़ी होता है। इस परिस्थिति में हर लड़की को अपने स्वविवेक और माता पिता के घर में दिये गये संस्कार के अनुसार चलना पड़ता है। यह समय हर नवविवाहित लड़की के जीवन का एक अहम मोड़ होता है। यदि लड़की अथवा अब यों कहें कि वह नव बहु यदि अपने को अपने ससुराल के परिवार और परिवेश के अनुसार ढालने में स्वविवेक अनुसार सफल रहती है, तो निश्चित रूप से उसका शादीशुदा जीवन सुखमय हो जाता है और परिवार में किसी भी तरह का क्लेश नहीं उत्पन्न होने पाता है। उसका पति भी उससे खुश रहता है और उस नव बहू का सम्मान भी परिवार में बढ़ता है। लेकिन अगर वह लड़की शादी के बाद भी अपने ससुराल के परिवार की भावनाओं का ध्यान न रखते हुए, अपने माता पिता के परामर्श अनुसार चलती है, तो निश्चित रूप से एक न एक दिन ससुराल के घर परिवार में अशांति छा जाती है और परिवार विखरने लगता है। यहाँ तक की अब उसके निजी जीवन में अपने पति से भी मधुर संबंध नहीं रह जाता है।
आज कल यह प्रायः देखने को मिल रहा है कि शादी के बाद लड़की को अपने घर से बिदा कर देने के बाद भी उसका परिवार, विशेष कर उसकी माँ , हमेशा मोबाईल फोन पर उससे सम्पर्क बनाये रखती है और घड़ी घडी उस परिवार की खबर लेती रहती है। आज कल लड़कियों की माताएं हर घड़ी रोज़ रोज़ लड़कियों से उसके ससुराल की खबर लेती रहतीं हैं कि उसके घर में कैसे चल रहा है, क्या खाना पक रहा है, किसकी किससे बनती है, घर की खर्चा कौन संभालता है, इत्यादि अनावश्यक बातें। लड़की भी मोबाईल फोन से उस घर परिवार की सारी खबरों से अपने माँ को वाकिफ कराते रहती है। इस क्रम में माता बहुत सारी गैर जरूरी परामर्श अपने लड़की को देती रहती है, जो उस परिवार के माहौल के अनुसार सही नहीं बैठता है। यह आज कल आम बात बन गयी है और परिवारिक कलह अशांति का कारण बन गया है। सही मायने में कहा जाये तो माँ मोबाईल फोन का उपयोग कर अपने लड़की को उस ससुराल वाले घर में अपने को अपने बुद्धि विचार और स्वविवेक अनुसार चलने और स्थिर नहीं होने देती है। इस गैर जरूरी परामर्श का अंतिम परिणाम यहाँ तक अब देखने को मिल रहा है कि नयी बहू के घर में प्रवेश करने के साथ ही कुछ ही दिनों में परिवार बिखर जाता है और किसी किसी हालत में तो अपने पति से भी नहीं बनने के चलते तलाक हो जाता है। लड़की के नैहर के लोगों द्वारा उसके ससुराल में मोबाईल से सब समय गैर जरूरी परामर्श देना एक अभिशाप बनता जा रहा है।
माता पिता अपनी लड़की का शादी उसके सुखी जीवन के लिए करते हैं। उचित यही होता है कि नये घर और परिवार में अपनी लड़की को ब्याहने के बाद उसे समुचित अवसर देना हर माता पिता और इस परिवार का फर्ज बनता है कि वे अपने पति के साथ नये घर परिवार में अच्छे से स्थापित हो सके और उस परिवार को सुखमय बना सके। अगर ससुराल का परिवार सुखमय होगा तभी नयी बहू का दामपत्य जीवन भी सुखी और समृद्ध होगा। इसके लिए माता पिता के घर के साथ अपनी बेटी का मधुर संबंध बनाये रखते हुए अनावश्यक गैर जरूरी परामर्श पर अंकुश लगाने की कोशिश किया जाये ताकि दोनों परिवारों लड़की के नैहर और ससुराल में भी अच्छा संबंध बना रहे।
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