सेवानिवृत्त कर्मी ने शिक्षा विभाग के एसीएस से न्याय की लगाई गुहार

- पांच वर्षों से वंचित हैं सेवानिवृत्ति के आर्थिक लाभ से, संस्कृत
बिहार राज्य संस्कृत अकादमी, पटना के एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हृदय नारायण झा ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ से भावनात्मक काव्यात्मक निवेदन के माध्यम से न्याय की गुहार लगाई है। श्री झा ने आरोप लगाया है कि उन्हें सेवानिवृत्त हुए साढ़े चार वर्ष बीत चुके हैं, फिर भी आज तक उन्हें न तो सेवानिवृत्त लाभ मिला है और न ही अन्य वित्तीय देनदारी का भुगतान किया गया है।
उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा न्यायादेश के अनुपालन के बावजूद उन्हें छठे वेतन पुनरीक्षण के अंतर्गत वेतन अंतर के लाभ नहीं मिले हैं, जबकि उनके समकक्ष अन्य कर्मियों को सेवांत लाभ का भुगतान पहले ही किया जा चुका है।
श्री झा ने दावा किया कि शिक्षा विभाग ने पूर्व में न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप छठे वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू करते हुए कर्मियों को समस्त लाभ प्रदान किए हैं, लेकिन अकादमी के उनके जैसे कर्मियों को विभागीय उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि संस्कृत अकादमी, जो एक स्वायत्तशासी संस्था है, उसे विभागीय अधिकारियों द्वारा वर्षों से बिना कार्यसमिति के चला कर संचालन में गंभीर अनियमितताएं बरती जा रही हैं। विद्वानों के पद खाली पड़े हैं और जिन अधिकारियों को अकादमी की जिम्मेदारी सौंपी गई है, उन्हें भाषा एवं सांस्कृतिक संस्थानों की समझ भी नहीं है।
सेवा का उल्लेखनीय योगदान
श्री झा ने अपने सेवाकाल के दौरान दिए गए योगदानों का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने दुर्लभ तालपत्र पांडुलिपियाँ अकादमी को दान कीं, राज्य में पहली बार संस्कृत वीडियो का निर्माण किया और शोध आधारित ज्ञान प्रदर्शनी, राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन एवं विशेषांक पत्रिका का प्रकाशन भी किया।
कोविड लॉकडाउन के समय उन्होंने "संस्कृत अकादमी बिहार" नामक यूट्यूब चैनल की स्थापना कर "मेरा जीवन मेरा योग" जैसे कई शैक्षणिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का निर्माण एवं प्रसारण किया। इन प्रयासों के माध्यम से उन्होंने योग और भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रचार-प्रसार में अद्वितीय योगदान दिया।
"जीवन अर्थहीन सा लगने लगा है": भावुक निवेदन
अपने काव्यात्मक निवेदन में उन्होंने कहा:
काव्य निवेदन
सेवा में श्रीमान् श्रीयुत् डा० एस० सिद्धार्थ ।
एसीएस शिक्षा विभाग बिहार के सर्वसमर्थ ।।
अन्तर का यह काव्य निवेदन स्वीकारें श्रीमान् ।
न्याय मिले शिक्षा विभाग से अर्जी है श्रीमान् ।।
विभागीय अत्याचार शिकार सेवानिवृत्तकर्मी हूँ।
संस्कृत अकादमी सेवानिवृत्तकर्मी यहाँ प्रताडित हूँ।।
साढे चार वर्ष बीते क्यों नहीं मिला सेवान्त लाभ ?
कहाँ है क्या व्यवधान बताया गया नहीं क्यों मिला न लाभ ?
भूमि भवन से हीन सभी अवसर से हीन शहर में जीना।
कैसे संभव हो सकता है बौद्धिक स्वाभिमान का बचना ।।
जो हरएक सेवानिवृत्तकर्मी का हक है अकादमी में।
मुझसे पहले सेवानिवृत्त लाभ पा चुके अकादमी में ।।
न्यायादेश का अनुपालन शिक्षा विभाग कर चुकी है साहेब।
जिसमें राज्यकर्मी के समतुल्य लाभ हर देय है साहेब ।।
पंचम् पुनरीक्षित चतुर्थ पंचम अंतर भुगतान हुआ है।
षष्ठम पुनरीक्षित भी न्यायादेश मानकर दिया हुआ है।।
किन्तु नहीं षष्ठम वेतन पुनरीक्षण लाभ मिला कर्मी को।
पंचम् षष्ठम सप्तम अंतर लाभ नहीं दी है कर्मी को ।।
मान लिया जिसको वह न्यायादेश अमान्य है क्यों विभाग में?
अकादमी की उपविधि का उच्छेद हो रहा क्यों विभाग में?
अकादमी शिक्षा विभाग संचालित है स्वायत्त इकाई।
संचालन के लिए विभाग ने तोडी अपनी नियम बनायी।।
बाइस वर्षों से विघटित करके रखी है कार्य समिति।
अकादमी के संचालन की कैसी है ये प्रभार नीति ।।
विविध विषय के विद्वानों की कुर्सी खाली कर रखी है।
विभागीय नासमझ किसी अधिकारी को जिम्मा दे दी है।।
जिसको भाषा सांस्कृतिक संस्था का कोई बोध नहीं है।
जिसको प्रभार हित में निज कर्तव्य कर्म का बोध नहीं है।।
विषय जॉच का है श्रीमान् मेरा मुद्दा यह सत्य मानिए।
सेवानिवृत्त कितनों को इस अवधि में लाभ मिला है पूछिए ।।
जिस आधार को मान विभागीय पहल से उनको लाभ मिला है।
उस आधार को मान के क्यों मेरा हक मुझको नहीं मिला है?
क्या क्या मैंने दिया है अपनी सेवा में कुछ तो विचारिए।
बावजूद इसके प्रताड़ना कितना वाजिब है विचारिए।।
कर्मी बनकर प्रथम चरण में अकादमी को दान दिया है।
दुर्लभ तालपत्र पाण्डुलिपि याँ अकादमी हित त्याग किया है।।
बिहार का सबसे पहला संस्कृत वीडियो निर्माण किया है।
सर्वसुलभ हित चिन्तन में पुस्तिका भी उसके साथ दिया है।।
राज्य में पहलीबार शोध आधारित ज्ञान प्रदर्शनी दी है।
विभागीय शिक्षा दिवस का आकर्षण अनन्य रही है।।
राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन द्विदिवसीय किया आयोजन।
बिहार के संस्कृत अवदान के आलेखों का किया संचयन ।।
राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन विशेषांक पत्रिका प्रकाशन।
मेरे ही संयोजन, सह-सम्पादन में वह हुआ प्रकाशन ।।
संस्कृत अकादमी के कार्यउद्देश्य के हित में नवाचार की।
सबके हित में विश्वगुरू की योग विरासत को जागृत की ।।
सोचा इस युग में अकादमी का हो अपना यूट्यूब चैनल।
उस पर हो अपलोड यहाँ की गौरवशाली योग विरासत ।।
संस्कृतअकादमी बिहार चैनल पर मेरा जीवन मेरा योग।
कार्यक्रम निर्माण किया अपलोड किया उपयोगी योग।।
विश्वगुरु के योग विरासत पर आधारित सबका योग।
क्या है इसकी सर्वश्रेष्ठता क्या है जनोपयोगी योग।।
वर्षों की निज योग साधना कौशल का निःस्वार्थ भाव से।
लॉकडाउन में त्याग किया अपलोड कर दिया इष्ट भाव से ।।
उसी वर्ष दो हजार बीस के अंत में सेवानिवृत्त होकर।
अर्थहीन बौद्धिक जीवन में सिसक रहा हूँ खाकर ठोकर।।
कबतक ठोकर खाउँगा शिक्षा विभाग का लाम की खातिर ?
कब तक क्षुधित पिपासित रहूँ प्रताड़ित अपने हक की खातिर?
मरण से भी पीडादायक है यह जीवित में जीवन जीना।
निज अधिकार से वंचित होकर कैसा है यह जीवन जीना ।।
धर्म संस्कृति कला सहित साहित्य समर्पित ऐसा जीवन।
अर्थहीन है वर्तमान में सेवानिवृत्त काल का जीवन ।।
ऐसे में कैसे संभव होगा अपने अस्तित्व की रक्षा।
सोचें और निकालें हल जिससे होगी अस्तित्व की रक्षा ।।
अतः आपसे अनुनय विनय निवेदन है ए०सी०एस० साहेब ।
कृपा करें भुगतान दिलाकर जीवन को राहत दें साहेब ।।
"मरण से भी पीड़ादायक है यह जीवित में जीवन जीना,
निज अधिकार से वंचित होकर कैसा है यह जीवन जीना।" उन्होंने एसीएस श्री डॉ. सिद्धार्थ से करबद्ध निवेदन किया है कि वे उनके लंबित भुगतान को शीघ्र दिलवाने की कृपा करें, जिससे उनका जीवन कुछ हद तक आर्थिक व मानसिक राहत पा सके।
हृदय नारायण झा
सेवानिवृत्तकर्मी
बिहार राज्य संस्कृत अकादमी, पटना l
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