बाघ भाई की शादी
वनराज ने आदेश है फरमाया ,व्याघ्र ने है गीदड़ को बताया ।
गीदड़ ने राज्ञादेश ये बताकर ,
सारे पशु पक्षियों को बुलाया ।।
सभागार में पशु पक्षी ये आए ,
एक एक कर मंत्री राजा आए ।
गीदड़ आमंत्रण पत्र था लाया
व्याघ्र देव सादर सबको बुलाए ।।
दे रहा हूॅं सबको मैं निमंत्रण ,
प्रीति भोज में सबको आने को ।
हर्ष आनंद की इस बेला में ,
सबको भूमिका निभाने को ।।
चलना है बारात सभी को ,
कल मेरी धूमधाम से शादी ।
खूब झूमेंगे नाचेंगे गाऍंगे ,
पहुॅंचने न पाऍं कोई उन्मादी ।।
कोयल खूब थी कूक सुनाई ,
पपीहा निर्गुण खूब थी गाई ।
मेंढक ने बीच तान भरा था ,
झींगुर की बजी खूब शहनाई ।।
भालू बंदर खूब नाच रहे थे ,
शशक मार रहा खूब उछाल ।
बाघ शेर ने खूब रुपए लुटाए ,
बंदर भालू हो गए मालामाल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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