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मर्द और औरत

मर्द और औरत

मर्द बनो तुम थोड़ा - थोड़ा,
बनूं तनिक मैं औरत।
थोड़े - थोड़े परिवर्तन की,
है जी बहुत जरूरत।।


तुम दिल को थोड़ा सख्त करो।
जज्बातों को भी जब्त करो।।
मैं दिल को नर्म बनाऊंगा।
जज्बातों को अपनाऊंगा।।
हम दोनों के बीच न होगी,
लिंग भेद की जिल्लत।


तुम बच्चे को सैर कराओ।
हर गलती पर डांट लगाओ।।
मैं नाश्ता-टिफिन बनाऊंगा।
नहलाऊंगा व खिलाऊंगा।।
हम दोनों मिलकर लिक्खेंगे,
खुद बच्चे की किस्मत।


अम्मा - बापू साथ रहेंगे।
सिर पर आठो हाथ रहेंगे।।
तुम उनके बेटा बन जाओ।
मुझको उनकी सुता बनाओ।।
हम दोंनों के बापू - माई,
से घर होगा जन्नत।


घर तुमसे, तुम घर की मुखिया।
ना कहलाओ अबला - दुखिया।।
मैं सदस्य बन खुश रह लूंगा।
तुमने सहा, सभी सह लूंगा।।
आखिर हम दो, प्राण एक हैं,
यही हमारी चाहत।


जन्म-जन्म तक साथ निभायें।
तुम मैं, मैं तुम, बन इठलायें।।
प्यार आदि हो, प्यार अंत हो।
प्यार जगत का सार - सत्य हो।।
प्यार बांटने की पड़ जाए,
नर - नारी को आदत।


फिर जो नई पौध पनपेगी।
समरसता - समभाव रखेगी।।
औरत - मर्द मित्र - सम होंगे।
कंधे जुड़े, बोझ कम होंगे।।
हाथों में ले हाथ चलें हम,
चाह रही है कुदरत।


पहले भी हम एक रहे थे।
जैव - जगत में नेक रहे थे।।
असुर प्रवृत्ति अमानुष आये।
मनुज - मनुज में भेद कराये।।
इन समस्त भेदों को भेदो,
फैलाते ये नफरत।


माली एक, एक गुलदस्ता।
धागा एक, पिरोकर रखता।।
अब ये भेद नहीं सह सकते।
डंके की चोटों पर कहते।।
हम अभेद अविभाज्य कहायें,
हर दिल में है हसरत।


घर के सारे काम - काज को।
बंधु - बांधव कुल समाज को।।
चार हाथ निज चार पांव से।
ढंक लेंगे "हम युगल" छांव से।।
इस परिवर्तन हेतु चाहिए,
बस थोड़ी सी हिम्मत।


हम बदलेंगे, जग बदलेगा।
धीरे - धीरे सब बदलेगा।।
पति - पत्नी गाड़ी के चक्के।
साथ चलें, पथ कच्चे - पक्के।।
सुख हो या दुख, साथ रहेंगे,
तभी बढ़ेगी इज्जत।


डॉ अवधेश कुमार अवध
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