"समय और मनःस्थिति"
समय की गति सदा एक-सी रहती है — न वह रुकता है, न धीमा पड़ता है, और न ही तेज़ चलता है। फिर भी, हम सबने यह अनुभव किया है कि दुख के क्षणों में समय बहुत लंबा लगता है। हर लम्हा भारी और अंतहीन प्रतीत होता है। प्रतीक्षा में बीतता हुआ समय तो जैसे थम ही जाता है — मानो एक-एक पल सदी बन जाए।
इसके विपरीत, जब हम सुखद या व्यस्त पलों में होते हैं, तो समय पंख लगाकर उड़ता हुआ लगता है। बीता हुआ कठिन समय भी जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो अक्सर कहते हैं — "अरे, ऐसा लगता है जैसे कल ही की बात हो!"
इस विरोधाभास का कारण समय नहीं, हमारा मन है। हमारी मनःस्थिति ही यह तय करती है कि हम समय को कैसे अनुभव करेंगे। इसलिए जीवन में धैर्य, संतुलन और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
यदि हम अपने मन को साध लें, तो दुख के समय में भी संयम बना रहेगा, और समय सहजता से बीत जाएगा। यही समय की सबसे बड़ी सीख है — वह निरंतर चलता है, पर उसका असर हम पर इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसे किस नजरिए से देखते हैं। जब दृष्टिकोण बदलता है, तो समय का प्रभाव भी बदल जाता है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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