उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर
डॉ राकेश कुमार आर्यउत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर
' पारश्य ' देश ईरान कभी भारत का एक अंग रहा।
पारसी लोगों का मूल पूर्वज अपना भारत देश रहा।।
' आर्यान' प्रांत ईरान बना, वैदिक धर्म अनुयायी था।
मैक्समूलर है लेखक इसका, ईरान सत्यानुरागी था।।
उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर।
वही पारसी कहलाए , हमें गर्व है उनकी हस्ती पर।।
भारत की नदियों के ऊपर नाम रखे निज नदियों के।
पारस से प्रमाणित होते संबंध हमारे सदियों के।।
उपकारों को नहीं भुलाया, सरस्वती और सरयू के ।
दोनों को सम्मान दिया कह हरहवती और हरयू के।।
भरत को बोला 'फरत' उन्होंने भूपालन को 'बेबिलन'।
हम ही भूल गए निज गौरव, बिगड़ा भाषा उच्चारण।।
विस्मय होता है आज देखकर बच्चे शिक्षक बन बैठे।
मूल पिता पर रौब झाड़ते, रहते हर पल ऐंठे - ऐंठे।।
मेधा को लिया उधार हमीं ने, गौरव सारा बिसराया।
अपने ही बिछड़े परिजनों को , नहीं इतिहास बताया।।
सीख लीजिए पारस से यह, दूरी कितनी घातक होती ?
अपने ही जब नादिर बन जाते पीड़ा कितनी गहरी होती ?
हाथ पकड़ अपनों को रखिए, साथ हमेशा याद रखो।
आभास दीजिए अपनेपन का, कड़वाहट को दूर रखो।।
स्याह रात का अंधियारा था, 'अपने' हाथ झटक बैठे।
इस्लाम का झंडा हाथ उठाकर, देश में रक्त बहा बैठे।।
अपने ही अपने रह न सके , उन तूफानों की आंधी में।
मातृभूमि को किया विभाजित सहयोग दिया बर्बादी में।।
भूलो मत इतिहास कभी अपना हर पृष्ठ हमें बतलाता है।
किस-किस ने कब की गद्दारी, खोल खोल समझाता है।।
जो अतीत को भूलेगा, भविष्य उसी का उजड़ा करता।
जो बीते कल से शिक्षा ले, भविष्य उसी का सुधरा करता।।
भारत के बाहर भारत खोजो, गंभीर शोध अनुसंधान करो।
' पारश्य ' देश ईरान कभी भारत का एक अंग रहा।
पारसी लोगों का मूल पूर्वज अपना भारत देश रहा।।
' आर्यान' प्रांत ईरान बना, वैदिक धर्म अनुयायी था।
मैक्समूलर है लेखक इसका, ईरान सत्यानुरागी था।।
उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर।
वही पारसी कहलाए , हमें गर्व है उनकी हस्ती पर।।
भारत की नदियों के ऊपर नाम रखे निज नदियों के।
पारस से प्रमाणित होते संबंध हमारे सदियों के।।
उपकारों को नहीं भुलाया, सरस्वती और सरयू के ।
दोनों को सम्मान दिया कह हरहवती और हरयू के।।
भरत को बोला 'फरत' उन्होंने भूपालन को 'बेबिलन'।
हम ही भूल गए निज गौरव, बिगड़ा भाषा उच्चारण।।
विस्मय होता है आज देखकर बच्चे शिक्षक बन बैठे।
मूल पिता पर रौब झाड़ते, रहते हर पल ऐंठे - ऐंठे।।
मेधा को लिया उधार हमीं ने, गौरव सारा बिसराया।
अपने ही बिछड़े परिजनों को , नहीं इतिहास बताया।।
सीख लीजिए पारस से यह, दूरी कितनी घातक होती ?
अपने ही जब नादिर बन जाते पीड़ा कितनी गहरी होती ?
हाथ पकड़ अपनों को रखिए, साथ हमेशा याद रखो।
आभास दीजिए अपनेपन का, कड़वाहट को दूर रखो।।
स्याह रात का अंधियारा था, 'अपने' हाथ झटक बैठे।
इस्लाम का झंडा हाथ उठाकर, देश में रक्त बहा बैठे।।
अपने ही अपने रह न सके , उन तूफानों की आंधी में।
मातृभूमि को किया विभाजित सहयोग दिया बर्बादी में।।
भूलो मत इतिहास कभी अपना हर पृष्ठ हमें बतलाता है।
किस-किस ने कब की गद्दारी, खोल खोल समझाता है।।
जो अतीत को भूलेगा, भविष्य उसी का उजड़ा करता।
जो बीते कल से शिक्षा ले, भविष्य उसी का सुधरा करता।।
भारत के बाहर भारत खोजो, गंभीर शोध अनुसंधान करो।
अपने योद्धा पूर्वजों का - तन, मन, धन से सम्मान करो।।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com