जिन्हें हिन्दू धर्म और देवता पर श्रद्धा है, केवल उन्हें ही मंदिर-सेवा में नियुक्त किया जाए ! – सनातन संस्था

श्री शनिशिंगणापुर एक जागृत तीर्थक्षेत्र है, जहाँ श्रद्धालु देवता की कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। हाल ही में वहाँ पवित्र चबूतरे से संबंधित एक घटना के कारण विवाद उत्पन्न हुआ था। इस पृष्ठभूमि में मंदिर प्रशासन द्वारा कुछ कर्मचारियों को सेवामुक्त कर मंदिर की सात्त्विकता की रक्षा हेतु जो निर्णय लिया गया, वह निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है।
हिंदू मंदिर केवल स्थापत्य नहीं, बल्कि श्रद्धा के केंद्र होते हैं। ऐसे स्थानों पर सेवा करनेवालों को धर्म और देवता के प्रति श्रद्धा रखनेवाले होना आवश्यक है, ऐसा स्पष्ट मत सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री अभय वर्तक ने व्यक्त किया है।
‘मंदिर’ केवल एक भवन नहीं, वह देवता का सान्निध्य प्रदान करनेवाला एक दिव्य स्थान होता है। ऐसे स्थानों पर कार्य करनेवालों की वृत्ति, श्रद्धा और जीवनशैली धार्मिक दृष्टिकोण से सात्त्विक होनी चाहिए, यह आज की आवश्यकता है।
मंदिर प्रशासन द्वारा कर्मचारी नहीं, बल्कि ‘सेवक’ नियुक्त किया जाना चाहिए – ऐसा सेवक जो सनातन धर्म का पालन करता हो, धर्म पर श्रद्धा रखता हो और अपने आचरण में पवित्रता व शुचिता का पालन करता हो। जिनके हृदय में श्रद्धा ही नहीं, उन्हें देव-सेवा में नियुक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं। क्योंकि जहाँ श्रद्धा नहीं, वहाँ सेवा भी नहीं हो सकती।
इसलिए केवल श्री शनिशिंगणापुर ही नहीं, अपितु सभी देवस्थानों को यह भूमिका अपनाकर धार्मिक भावना से युक्त, श्रद्धावान सेवकों की नियुक्ति करनी चाहिए, ऐसी मांग श्री वर्तक ने की है।
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