दिव्यांशी की लेखन कला पर परिवार गौरवान्वित

- बाल लेखिका की दूसरी पुस्तक "Scars into Stars" हुई प्रकाशित
पटना। कहा गया है— "होनहार विरवान के होते चिकने पात", और इस कहावत को साकार कर दिखाया है बाल लेखिका दिव्यांशी मिश्रा ने। उन्होंने कम उम्र में ही साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है। हाल ही में उनकी दूसरी अंग्रेज़ी पुस्तक "Scars into Stars" का प्रकाशन हुआ है, जिसने एक बार फिर यह साबित किया है कि दिव्यांशी केवल एक लेखिका नहीं, बल्कि संवेदनशील सोच और आत्मिक दृष्टिकोण की धनी साहित्यकार हैं।
इससे पहले उनकी पहली पुस्तक "Embers of the Soul" ने पाठकों को आत्मा की गहराइयों से परिचित कराया था। अब "Scars into Stars" में दिव्यांशी यह दर्शाती हैं कि जीवन के संघर्ष, पीड़ा और घाव कैसे आत्मबल, साहस और उम्मीद के साथ हमें एक नई ऊँचाई तक पहुंचा सकते हैं।

दिव्यांशी की इस उपलब्धि पर उनके पिता अरुण कुमार मिश्र, माता रुबी देवी, और दादा उपेंद्र मोहन अत्यंत गर्वित हैं। पूरे परिवार ने इस क्षण को न केवल गर्व से बल्कि भावुकता से भी महसूस किया।
उनके पिता ने कहा, “दिव्यांशी की सोच, कल्पनाशीलता और भाषा पर पकड़ ने हम सबको अचंभित कर दिया है। वह जिस तरह से जीवन को अपने शब्दों में उतारती है, वह वाकई अद्भुत है।”
दिव्यांशी की इस सफलता ने यह प्रमाणित कर दिया है कि साहित्यिक प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। उसकी कलम से निकले विचार न केवल युवा पाठकों को प्रेरित करेंगे, बल्कि साहित्य के गंभीर पाठकों को भी सोचने पर विवश करेंगे। दिव्य रश्मि पत्रिका परिवार की ओर से दिव्यांशी मिश्रा को ढेरों शुभकामनाएं और उनके उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य के लिए मंगलकामनाएं।
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