भारत में अगर राजनीति से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाये तो 3000 पार्टियों से सिर्फ 2 या 4 पार्टियाँ ही बचेंगी
डॉ. राकेश दत्त मिश्र
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार चुनने का अधिकार प्राप्त है। यह लोकतंत्र सिर्फ एक राजनीतिक प्रणाली नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और उसकी पहचान का मूल तत्व है। लेकिन जब इस लोकतंत्र की आत्मा में भ्रष्टाचार का ज़हर घुलने लगता है, तब समूचा तंत्र डगमगाने लगता है। भारत में आज भ्रष्टाचार न केवल सरकारी तंत्र में बल्कि राजनीतिक प्रणाली की जड़ों में भी समाहित हो चुका है। अगर इस राजनीतिक भ्रष्टाचार का पूर्णतः उन्मूलन हो जाए, तो भारत की लगभग 3000 राजनीतिक पार्टियों में से केवल 2 या 4 ही टिक पाएंगी। यह विचार सुनने में भले ही अतिशयोक्ति लगे, परंतु यह तथ्यात्मक रूप से अत्यंत समीचीन है।
राजनीतिक दलों की बाढ़ और उनका मूल कारण
स्वतंत्रता के बाद भारत में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। धीरे-धीरे सामाजिक, क्षेत्रीय, जातिगत और वैचारिक मतभेदों के चलते कई राजनीतिक दल अस्तित्व में आए। प्रारंभ में यह एक सकारात्मक लोकतांत्रिक प्रक्रिया थी, लेकिन धीरे-धीरे अनेक दल केवल अपने निजी स्वार्थों, सत्ता की भूख, और धन संचय के लिए अस्तित्व में आए। कई दलों ने सिर्फ चंदे और चुनावी लाभों के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया। परिणामस्वरूप आज भारत में 3000 से अधिक पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, जिनमें से अधिकांश का जनता से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
राजनीति और भ्रष्टाचार: एक दुष्चक्र
- भ्रष्टाचार और राजनीति का गठजोड़ बहुत पुराना है। यह रिश्ता इतना मजबूत हो चुका है कि राजनीति को भ्रष्टाचार से अलग कर पाना लगभग असंभव प्रतीत होता है। निम्नलिखित बिंदुओं से यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार भ्रष्टाचार राजनीति की शिराओं में समा गया है:
- चुनावी फंडिंग का अपारदर्शी स्वरूप: अधिकांश राजनीतिक दल अपने चुनावी खर्चों का कोई स्पष्ट हिसाब नहीं देते। चंदा किससे आया, कितना आया, कहाँ खर्च हुआ — यह सब अस्पष्ट रहता है।
- पार्टी टिकट में पैसों का खेल: योग्य उम्मीदवारों की बजाय अमीर, बाहुबली और चाटुकारों को टिकट मिलता है। टिकट एक प्रकार की 'नीलामी' बन चुकी है।
- जनता के पैसे का दुरुपयोग: सरकार में आने के बाद मंत्रीगण और नेता भ्रष्टाचार के माध्यम से पैसा बनाते हैं। योजनाओं में कमीशनखोरी आम हो चुकी है।
- फर्जी पार्टियाँ और उनका उद्देश्य: अनेक पार्टियाँ सिर्फ चुनावों के समय सक्रिय होती हैं। उनका उद्देश्य सत्ता प्राप्ति नहीं बल्कि फंड और टैक्स छूट के माध्यम से लाभ अर्जित करना होता है।
यदि भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए तो क्या होगा?
- केवल विचारधारा आधारित दल बचेंगे: वे दल जो सिद्धांत, वैचारिक मजबूती और जनसेवा को लेकर प्रतिबद्ध हैं, वही शेष रहेंगे।
- छल, कपट और सौदेबाजी पर टिकी पार्टियाँ समाप्त हो जाएँगी: जिनका आधार ही भ्रष्टाचार है, वे टिक नहीं पाएंगी।
- जनता का विश्वास लौटेगा: जब भ्रष्टाचार नहीं रहेगा तो जनता और लोकतंत्र के बीच का भरोसा सुदृढ़ होगा।
- राजनीति सेवा का माध्यम बनेगी: सत्ता का लोभ नहीं, सेवा का संकल्प राजनीति की प्राथमिकता बनेगा।
केवल 2 से 4 पार्टियाँ क्यों बचेंगी?
- भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति का मतलब होगा – पारदर्शिता, जवाबदेही और सेवा भाव। ऐसे में:
- क्षेत्रीय स्वार्थ पर आधारित पार्टियाँ विलुप्त हो जाएँगी।
- जातिवाद और संप्रदायवाद की राजनीति समाप्त हो जाएगी।
- केवल वे दल बचेंगे जिनका संगठनात्मक ढांचा मजबूत, आंतरिक लोकतंत्र सशक्त और नीतियाँ जनोन्मुख होंगी।
- बचे हुए दल राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर आधारित होंगे – जैसे विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार।
भारतीय राजनीति में सुधार की संभावनाएँ
- भ्रष्टाचार हटाना असंभव नहीं है, यदि निम्नलिखित कदम उठाए जाएँ:
- चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता: चुनाव आयोग द्वारा सभी दलों को RTI के तहत लाया जाए।
- राजनीतिक दलों की ऑडिटिंग अनिवार्य: सालाना खातों की जाँच एक स्वतंत्र संस्था द्वारा हो।
- आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों पर रोक।
- टिकट वितरण में प्राथमिकता योग्यता को मिले।
- मीडिया और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी: हर नागरिक को राजनीति में सजग और सक्रिय बनना होगा।
- भ्रष्टाचार मुक्त भारत: संभावनाएँ और चुनौतियाँ
भ्रष्टाचार मुक्त भारत न केवल राजनीतिक दृष्टि से सशक्त होगा, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध होगा। परंतु यह कार्य अत्यंत कठिन है। इसके लिए:
- जन आंदोलन की आवश्यकता होगी।
- युवाओं को राजनीति में भाग लेना होगा।
- डिजिटल और सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रयोग होना चाहिए।
- नेताओं की नहीं, नीतियों की पूजा करनी होगी।
- भारत में कुछ दल और नेता ऐसे हैं जिन्होंने पारदर्शिता और जनसेवा का आदर्श प्रस्तुत किया है। उदाहरणस्वरूप:कुछ क्षेत्रीय दल जो स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित हैं और अपने क्षेत्र के लिए ईमानदारी से कार्य कर रहे हैं।
- कुछ स्वतंत्र सांसद जिन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली और स्वयं को सार्वजनिक जीवन में ईमानदार बनाए रखा।
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी आत्मा 'सत्य' और 'धर्म' पर आधारित रही है। जब राजनीति इस आत्मा से हटकर केवल स्वार्थ, छल और भ्रष्टाचार की दिशा में बढ़ती है, तो राष्ट्र की नींव हिल जाती है। यदि आज हम भ्रष्टाचार को राजनीति से पूरी तरह समाप्त कर दें, तो देश में वैचारिक रूप से मजबूत केवल 2 से 4 पार्टियाँ ही शेष रहेंगी। बाकी सब स्वार्थ आधारित दल धीरे-धीरे विलीन हो जाएँगे।
हमारी यह टिप्पणी केवल एक राजनैतिक विश्लेषण नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – एक आह्वान है उस दिन के लिए, जब राजनीति फिर से जनसेवा और नैतिकता का पर्याय बने। तभी भारत सच्चे अर्थों में विश्वगुरु बन पाएगा।
डॉ राकेश दत्त मिश्र, सम्पादक दिव्य रश्मि और सामाजिक कार्यकर्ता |
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