पटना के हनुमान मंदिर में क्यों होती है दो विग्रह की पूजा?

डॉ. राकेश रंजन
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत असाधारण रूप से समृद्ध रही है। इसी विरासत के अंतर्गत अनेक मंदिरों की स्थापत्य कला, उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उनमें होने वाली पूजन पद्धति विशेष महत्व रखती है। ऐसा ही एक विलक्षण मंदिर है बिहार की राजधानी पटना में स्थित हनुमान मंदिर, जिसे 'महावीर मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की एक विशेषता है कि इसमें दो हनुमान विग्रहों की विधिवत पूजा होती है, जो भारत में एक अनोखा उदाहरण है। इस परंपरा के पीछे इतिहास, संघर्ष और आस्था की एक लम्बी कहानी छिपी हुई है। इस आलेख में हम इस परंपरा की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का गहन विश्लेषण करेंगे।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत, विशेष रूप से प्राचीन बिहार, छठी शताब्दी में अपने वैभव, समृद्धि और ज्ञान के केंद्र के रूप में विश्व प्रसिद्ध था। इसी कारण इसे 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था। इस वैभव से आकर्षित होकर विदेशी आक्रमणकारी भारत पर बार-बार आक्रमण करते रहे। इन्हीं में से एक था तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी।
बख्तियार खिलजी का विध्वंसकारी अभियान
खिलजी ने मेरठ से पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) तक का रास्ता तय करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला, ओदंतपुरी और अनेक मंदिरों एवं गुरुकुलों को नष्ट कर दिया। इन धार्मिक और शैक्षणिक केंद्रों के विनाश से न केवल भारत की बौद्धिक सम्पदा को हानि हुई बल्कि लोगों की आस्था को भी गहरा आघात पहुँचा।
बिहार के एक महत्वपूर्ण स्थल पर स्थित एक सूर्य मंदिर, जिसे आज मनेर शरीफ कहा जाता है, को भी खिलजी ने नष्ट कर दिया। इसके बाद वह एक और मंदिर के पास पहुँचा, जो वर्तमान पटना स्टेशन के पास स्थित था। वहाँ उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया और उसमें स्थित हनुमान जी की मूर्ति को पास के नाले में फेंक दिया। यह मंदिर ही बाद में महावीर मंदिर के रूप में जाना गया।
हिन्दू समाज की प्रतिक्रिया
मंदिर के ध्वंस और मूर्ति के अपमान से आहत स्थानीय हिन्दुओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने व्यायामशाला में एक नई प्रतिमा स्थापित की और वहाँ नियमित पूजा प्रारंभ की। यह स्थान हिन्दू समाज की आस्था और संकल्प का प्रतीक बन गया। वर्षों तक वहाँ केवल एक ही मूर्ति की पूजा होती रही।
ब्रिटिश काल में मंदिर का पुनरुद्धार
1875 ईस्वी में जब अंग्रेजों ने पटना में रेलवे स्टेशन का निर्माण कार्य आरंभ किया, तब पुनः मंदिर के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा। रेलवे प्रशासन ने मंदिर को हटाने की योजना बनाई, परंतु स्थानीय हिन्दू समाज ने इसका विरोध किया और रेल अधिकारियों से प्रार्थना की कि मंदिर को नष्ट न किया जाए। हिन्दुओं की श्रद्धा और इतिहास जानकर अंग्रेज अधिकारी द्रवित हो गए और उन्होंने मंदिर की भूमि हिन्दुओं को सौंप दी। इसके बाद रेलवे स्टेशन को थोड़ी दूरी पर स्थानांतरित कर निर्माण कार्य आरंभ हुआ।
दूसरी प्रतिमा की प्राप्ति और दो विग्रहों की पूजा की परंपरा
रेलवे कार्य के दौरान ही पास के नाले से वह मूर्ति प्राप्त हुई जिसे खिलजी ने मंदिर से निकालकर फेंक दिया था। अंग्रेज अधिकारी ने उस मूर्ति को व्यायामशाला में स्थापित वर्तमान प्रतिमा के पास रखवा दिया।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हिन्दू परंपरा में किसी भी मंदिर में एक ही विग्रह की पूजा होती है। दो विग्रहों की पूजा वर्जित मानी जाती है, परंतु इस स्थिति में जब दोनों प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी और दोनों के प्रति जनभावनाएँ जुड़ चुकी थीं, तो स्थानीय बुजुर्गों और धर्माचार्यों ने निर्णय लिया कि दोनों विग्रहों की एक साथ पूजा की जाएगी। इस निर्णय का अनुसरण करते हुए 1880 ईस्वी की हनुमान जयंती के अवसर पर दोनों मूर्तियों को विधिपूर्वक स्थापित कर पूजन प्रारंभ किया गया। तभी से आज तक इस मंदिर में दो हनुमान विग्रहों की विधिवत पूजा होती है।
मंदिर का प्रशासनिक इतिहास
1900 ईस्वी तक इस मंदिर पर रामानंद संप्रदाय के साधुओं का नियंत्रण रहा। इसके पश्चात 1948 तक गोसाईं संन्यासियों द्वारा इसका संचालन किया गया। 1948 में पटना हाईकोर्ट के आदेश द्वारा इस मंदिर को एक सार्वजनिक मंदिर घोषित कर दिया गया। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि यह मंदिर किसी एक संप्रदाय विशेष की सम्पत्ति न होकर जनसामान्य की श्रद्धा का केंद्र रहेगा।
आधुनिक मंदिर का निर्माण और आचार्य किशोर कुणाल की भूमिका
1983 से 1985 के बीच आचार्य किशोर कुणाल जी के नेतृत्व और प्रयासों से इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप में भव्य निर्माण हुआ। उन्होंने न केवल मंदिर का विस्तार किया, बल्कि इसे बिहार के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में एक बना दिया। मंदिर में अब एक पुस्तकालय, प्रसाद निर्माण केंद्र, धर्मशाला और चिकित्सा केंद्र जैसे सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
आचार्य किशोर कुणाल जी ने इस मंदिर को केवल पूजा स्थल तक सीमित न रखकर इसे सामाजिक जागरूकता, सेवा और संस्कृतिक चेतना का केंद्र बनाया है। उनके प्रयासों से यह मंदिर पूरे बिहार ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण उत्तर भारत के लिए एक प्रेरणा का केंद्र बन चुका है।
मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महावीर मंदिर पटना न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि यह सामाजिक सेवा, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। यहां हर वर्ग, हर संप्रदाय और हर जाति के लोग आते हैं, जिससे यह मंदिर भारतीय एकता और समरसता का जीवंत उदाहरण बन गया है।
पटना के महावीर मंदिर की यह अद्वितीय परंपरा – दो विग्रहों की पूजा – केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के संकल्प, धैर्य, आस्था और संस्कृति की प्रतीक है। यह मंदिर दर्शाता है कि किस प्रकार विदेशी आक्रमणों, सामाजिक संघर्षों और सांस्कृतिक आघातों के बावजूद भारत की आत्मा अजेय बनी रही है। आज जब हम इस मंदिर में दो हनुमान प्रतिमाओं को एक साथ पूजते देखते हैं, तो यह केवल पूजा नहीं बल्कि हमारी ऐतिहासिक विरासत और सामाजिक संग्राम की कहानी कहती है।यह मंदिर न केवल पटना की शान है, बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com