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महाराणा प्रताप जयंती पर ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर उठा स्वर, भारतीय जन महासभा अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने दी नई जानकारी

महाराणा प्रताप जयंती पर ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर उठा स्वर, भारतीय जन महासभा अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार ने दी नई जानकारी

वीरता, स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा के प्रतीक महाराणा प्रताप की जयंती भारतीय जन महासभा के अध्यक्ष धर्म चंद्र पोद्दार के नेतृत्व में उनके आवास पर सादगी और श्रद्धा के साथ मनाई गई। इस अवसर पर इतिहास को लेकर नई दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए श्री पोद्दार ने कहा कि “हमें इतिहास के नाम पर अनेक भ्रांतियां पढ़ाई गई हैं, जिनका अब धीरे-धीरे पर्दाफाश हो रहा है।”
श्री पोद्दार ने स्पष्ट किया कि महाराणा प्रताप की जयंती पारंपरिक रूप से उनके वंशज ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को ही मनाते आ रहे हैं, जबकि आज़ादी के बाद जनमानस को एक भ्रमित तारीख दी गई। उन्होंने जोर देकर कहा,
“महाराणा प्रताप ने कभी घास की रोटी नहीं खाई। यह एक मिथक है। इतिहासकारों ने यह भ्रांति फैलाई कि वे जंगलों में रहते थे और घास की रोटियां खाते थे, जबकि सच्चाई यह है कि वे अपने कबीले के लोहार जाति के लोगों के घरों में ठहरते थे और ‘फिकार’ नामक अनाज की रोटियां खाते थे, जो गेहूं जैसा ही होता है।”
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन संघर्षमय अवश्य था, लेकिन उनका स्वाभिमान और नेतृत्व अद्वितीय था। वे न केवल शौर्य और साहस के प्रतीक थे, बल्कि नीति, जनकल्याण और राष्ट्र प्रेम के भी जीवंत उदाहरण थे।
इस अवसर पर उपस्थित अन्य वक्ताओं ने भी महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया। वक्ताओं ने कहा कि हमें अपने बच्चों को सही और गर्वपूर्ण इतिहास से अवगत कराना चाहिए।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति रही। जयंती मनाने वालों में प्रमुख रूप से शामिल थे:मिश्रीलाल विश्वकर्मा, कैलाश चंद जांगिड़, विजय कुमार गोयल, सुखेन मुखोपाध्याय, मधु सिन्हा, श्रवण देबूका, ओम प्रकाश अग्रवाल, दुर्गा मुखोपाध्याय, मेघाश्री मुखोपाध्याय, निशा वाणी, अंतर्यामी पांडा, मधु परिहार, अपूर्व सिंह, डॉ. आर. एस. अग्रवाल आदि।
कार्यक्रम में महाराणा प्रताप के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई और उनके जीवन पर आधारित पुस्तकों का अवलोकन भी किया गया। कार्यक्रम का समापन देशभक्ति गीतों और राष्ट्रगान के साथ हुआ।
महाराणा प्रताप न केवल इतिहास की एक गौरवगाथा हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अखंड राष्ट्रभक्ति, स्वाभिमान और आत्मबलिदान का जीवंत प्रतीक भी। इस तरह की जयंती आयोजन न केवल उन्हें श्रद्धांजलि है, बल्कि हमारे सांस्कृतिक जागरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम भी है।
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