नालायक औलाद
जय प्रकाश कुंवरएक वो हैं जो छाती पर,
रोज मूंग दले जा रहे हैं।
एक हम हैं जो चुप रह,
हर कष्ट झेले जा रहे हैं।।
उन्हें न लोक है, न लाज है,
इच्छा पूर्ति भर ही काज है।
माँ बाप भले दुखी हों,
पर उनका अपना समाज है।।
बाप भले पैदल चलेंगे,
उन्हें नयी गाड़ी चाहिए।
माँ बाप भले भुखे रहें,
उन्हें भर पेट भोजन चाहिए।।
इन्हें न काम है न धाम है,
केवल आराम ही आराम है।
अगर काम करने को कहा जाए,
तब रिश्ता बदनाम है।।
घर में ऐसे औलाद हों हीं,
तो माँ बाप के लिए किस लायक हैं।
घर समाज सब जगह के लिए,
ऐसे औलाद नालायक हैं।।
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