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जीवन संग्राम

जीवन संग्राम

दिल का दर्द समझने वाला,
अब कोई यहाँ हमारा न रहा।
जब हमें सहारे की जरूरत थी,
तब कोई भी सहारा न रहा।।
काट ली थी उम्र सारी,
अपने सपनों को संजोनें में।
बड़ा होकर हमें फल देगा,
ऐसे पौधों को बोने में।।
बड़े होकर स्वस्थ पौधे,
सब के सब बांझ हो गये।
फल लगने और पाने की इच्छा,
न जाने कहाँ खो गये।।
ईश्वर के निर्णय के आगे,
आदमी को सिर झुकाना पड़ता है।
फिर भी हर आदमी दुनिया में,
अपने सामर्थ्य भर लड़ता है।।
लड़ते लड़ते जीवन शेष हो,
आराम तो बस हराम है।
यहाँ कोई साथ देने नहीं आता,
यही तो असल जीवन संग्राम है।।
 जय प्रकाश कुवंर
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