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पहलगाम नरसंहार का बदला

पहलगाम नरसंहार का बदला

कढ़े चलो बढ़े चलो ।
पढ़े चलो चढ़े चलो ।।
न दस पे न बीस पर ।
दस बदले तीस पर ।।
आका चाचा शीश पर ।
गोली चलाया जिसपर ।।
दृश्य को तू याद कर ।
याद को आबाद कर ।।
अब जून नहीं मई बन ।
जंग में तू विजयी बन ।।
भारत के तुम जवान हो ।
राष्ट्र के नव विहान हो ।।
आव देख न ताव देख ,
अभी नहीं चुनाव देख ।
दुश्मन के सीने चढ़कर ,
निज मूॅंछ का ताव देख ।।
राष्ट्र को ये जरूरत है ।
यही तो नया महूरत है ।।
नरसंहार एहसास कर ,
निष्ठा पर विश्वास कर ।
इस बाजू पे आस कर ,
दुष्ट दुश्मन का नाश कर ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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