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अपने कर्मों का फल चखता पाकिस्तान

अपने कर्मों का फल चखता पाकिस्तान

डॉ राकेश कुमार आर्य 
आतंकवाद नाम के जिस जिन्न को अमेरिका सहित विश्व की कई शक्तियां अपने लिए एक रक्षाकवच मानकर या अपने शत्रुओं को आतंकवाद के माध्यम से नष्ट करने की कुत्सित भावना के वशीभूत होकर पाल रही थीं , अब उनके लिए ही आतंकवाद स्वयं एक समस्या बन गया है। प्रकृति का यह एक स्वाभाविक नियम भी है कि आप जो कुछ कर रहे हैं, उसका परिणाम आपको ही भोगना पड़ेगा। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है :-


"यादृशं कुरुते कर्म तादृशं फलमाप्नुयात् ।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।।"


अर्थात "जैसे कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। किए गए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।"
अब इस बात को सारा संसार जान चुका है कि आतंकवाद के माध्यम से सारे संसार को नष्ट करने की योजनाओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाला पाकिस्तान आतंकवाद का जनक, पोषक , प्रचारक और विस्तारक बना। आज प्राकृतिक न्याय का शिकार होते हुए या समझो कि अपने किए हुए कर्म के फल के मुहाने पर पहुंचकर पाकिस्तान किस प्रकार बिलबिला रहा है ? - यह देखकर स्पष्ट हो जाता है कि जब अपने दुष्कर्मों का परिणाम आता है तो प्रत्येक राक्षस इसी प्रकार बिलबिलाता है। अब वहां के आतंकवादियों को यह पता चला है कि जब दूसरे लोगों को मारा जाता है या उनका खून बहाया जाता है तो उनके खून में और जब अपने परिजनों का खून बहता हुआ देखा जाता है तो उनके खून में कितना अंतर होता है ?
अपने कर्मों का फल चखता हुआ पाकिस्तान आज समझ रहा है कि निर्दोष लोगों के खून का मोल क्या होता है ? कभी अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को दूसरों को उत्पीड़ित कराने के दृष्टिकोण से पालापोसा था। अब यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि एक समय आने पर वही ओसामा बिन लादेन अमेरिका के लिए किस प्रकार की समस्या बन गया था ? परिणाम यह हुआ कि आतंक के उस भस्मासुर का अंत भी अमेरिका को ही करना पड़ा।
ईश्वरीय व्यवस्था की इस प्रक्रिया को तनिक देखिए तो सही कि जो अमेरिका कभी पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाते हुए भारत से कहा करता था कि आपके यहां हुई अमुक आतंकी घटना में पाकिस्तान का हाथ है तो इसके प्रमाण दीजिए और फिर उन प्रमाणों को रद्दी की टोकरी में फेंककर अमेरिका , पाकिस्तान और उनके मित्र न्याय का गला घोंटकर जिस प्रकार राक्षसी हंसी हंसा करते थे, आज वही अमेरिका आतंकवाद के विरुद्ध लड़ रहे भारत की ईमानदार लड़ाई में पाकिस्तान के साथ खड़ा न होकर भारत के साथ खड़ा है।
जहां यह ईश्वरीय व्यवस्था की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, वहीं यह हमारी आज की कूटनीतिक और रणनीतिक सफलता का परिणाम है। हमारी विदेश नीति की स्पष्टता का भी परिणाम है। हमारे तेजस्वी नेतृत्व की सफल नीतियों का भी परिणाम है।
इस दृष्टिकोण से देखेंगे तो प्रधानमंत्री श्री मोदी, गृहमंत्री श्री अमित शाह, एनएसए श्री अजीत डोभाल, विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर आदि वे प्रमुख चेहरे हैं जो इस समय राष्ट्रीय शक्ति, संप्रभुता और स्वाभिमान का प्रतीक बन चुके हैं। ये सब भी हमें ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत मिले हैं । अन्यथा अबसे पहले इन पदों पर बैठने वाले कई लोग आए और चले गए। उन्होंने कभी चुनौतियों को स्वीकार नहीं किया। चुनौतियों को अनदेखी करते हुए वह आराम की जिंदगी जीकर पदों से मुक्त हो गए। परंतु सुखद संयोग है कि आज इन पदों पर बैठने वाले सभी लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कर रहे हैं। यह मानकर कर रहे हैं कि ' यदि अभी नहीं तो कभी नहीं।' जब राष्ट्रीय नेतृत्व चुनौतियों से बचकर निकलता है तो राष्ट्र यथास्थितिवाद में जीता है और जब चुनौतियों को चुनौती देते हुए आगे बढ़ने का संकल्प लेता है तो वह तेजी से आगे बढ़ता है। उसका सम्मान बढ़ता है, उसकी जिजीविषा और जीवंतता का प्रमाण लोगों को मिलता है। लोग उसकी ऊर्जा का, उसके शक्ति स्रोतों का, उसकी आत्म शक्ति का और सामर्थ्य का लोहा मानते हैं।
जब लोग आपसे पूछकर अपने निर्णयों को अंतिम रूप देने लगें , तब समझिए कि आपके व्यक्तित्व का विकास हो रहा है, लोगों में आपकी विश्वसनीयता बढ़ रही है। आपकी गंभीरता समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता पर लोगों को विश्वास है कि आप जो कुछ बोलेंगे, वह उचित होगा। आज विश्व मंचों पर भारत की यही स्थिति बन चुकी है। पिछले एक दशक में भारत ने यही कमाया है। इसी कमाई का परिणाम है कि जहां 1971 में पाकिस्तान को घेरने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और जनरल मानेकशॉ को 7 महीने का समय लगा था, वहीं आज भारत ने पाकिस्तान को घेरने के लिए मात्र 12 दिन का समय लिया है। माना कि उस समय हमारी सैन्य क्षमताएं आज की बराबर बहुत कम थीं, परन्तु एक बात यह भी सत्य है कि उस समय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का आज के जैसा सम्मान भी नहीं था। आज आपको अमेरिका से यह पूछना नहीं पड़ा है कि हम पाकिस्तान को मारेंगे तो आप क्या करेंगे ? आज अमेरिका स्वयं आपके साथ मिलकर 'आतंकिस्थान' को कूटने में साथ दे रहा है। कभी अमेरिका स्वयं यह अपेक्षा किया करता था कि मुझसे बिना पूछे कुछ न किया जाए, आज बिना पूछे अमेरिका आपके साथ आ रहा है।
सारा यूरोप और अमेरिका सहित संसार के अधिकांश देश इस बात को बहुत गहराई अनुभव करने लगे हैं कि यदि आतंक पर हमने विजय प्राप्त नहीं की तो यह सारे संसार के लिए भस्मासुर बन जाएगा । सारे यूरोप में जिस प्रकार इस्लामिक आतंक की घटनाएं बढ़ी हैं ,उसके दृष्टिगत अधिकांश यूरोपीय देश इस्लाम के जिहादी स्वरूप से मुक्ति चाहते हैं। इसके अतिरिक्त पिछले इतिहास पर यदि हम दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों की विभीषिका यूरोप की धरती ने अपनी छाती पर झेली है। अब तीसरे विश्व युद्ध की यदि स्थिति बनती है तो अधिकांश यूरोपियन देशों की सोच रहेगी कि इस बार की विभीषिका यूरोप की धरती पर कहर न बरपाकर संसार के किसी दूसरे क्षेत्र में अपना काम करे तो अच्छा रहेगा। इसलिए भी यूरोप इस बार अमेरिका के साथ मिलकर भारत के साथ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है।
अब यूरोप और अमेरिका जिस प्रकार तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाओं से अपने आप को भयभीत से दिखाते हैं, इसका एक कारण यह भी है कि आतंकवाद के जिस जिन्न को उन्होंने पाला था, वह अब उनके नियंत्रण से बाहर हो गया है। अब ये देश मन से चाह रहे हैं कि इस जिन्न को काबू में रखा जाए। वास्तव में यही वह समय है जब कई देश ईमानदारी से आतंकवाद को कुचलने के लिए मनोयोग से काम कर रहे हैं।
इस स्थिति को उत्पन्न करने में प्रधानमंत्री श्री मोदी के व्यक्तित्व को भी कुछ श्रेय जाता है। जिन्होंने विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत के मानवतावादी विचारों से संसार को अवगत कराया है और बताया है कि भारत ही उस चिंतन और दर्शन का अधिष्ठाता देश हो सकता है , जो आतंकवाद को कुचलने में ईमानदारी से विश्वास रखता है।
भारत को इस समय समझना चाहिए कि वह महाभारत के युद्ध में खड़ा है और अदृश्य रूप से श्री कृष्ण जी उसका आवाहन कर रहे हैं कि राक्षसों के संहार में किसी प्रकार का प्रमाद नहीं होना चाहिए ? क्योंकि आर्यों का जीवन संसार से सभी राक्षसी शक्तियों के विनाश के लिए होता है । भारत फलकामी मूर्खों का देश नहीं है अपितु यह आर्य पुत्र / पुत्रियों , ईश्वर पुत्र / पुत्रियों का देश है। इसलिए संपूर्ण भूमंडल पर राज्य करने का अधिकार केवल आर्यों को है । आर्यों को अपने लिए अपने आप रास्ता बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ना होगा। इसलिए आतंकिस्थान को मिटाकर ही दम लेना है।

( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
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