सपना / स्वप्न / ख्वाब
गुजर जाती है जिंदगी ,सपने ही देखते देखते ।
कुछ आती है राहों पर ,
शेष लुप्त देखते देखते ।।
कुछ सपने जीवन में ,
ऐसे ही निखर जाते हैं ।
कुछ सपने जीवन में ही ,
बुरी तरह बिखर जाते हैं ।।
जीवन उलझे सपनों में ,
जीवित व मृत हो जाते हैं ।
होश संभालते मानव के ,
सपनों से प्रीत हो जाते हैं ।।
सपने रहे सपनों में उलझे ,
सपनों से बाहर ही सुलझे ।
रहे जो उलझे सपनों में ही ,
वही होते उलझे के उलझे ।।
सपने साकार करने में ,
बहुत बेकार चले जाते हैं ।
थक जाता है यह जीवन ,
संग अरमाॅं चले जाते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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