Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

सपना / स्वप्न / ख्वाब

सपना / स्वप्न / ख्वाब

गुजर जाती है जिंदगी ,
सपने ही देखते देखते ।
कुछ आती है राहों पर ,
शेष लुप्त देखते देखते ।।
कुछ सपने जीवन में ,
ऐसे ही निखर जाते हैं ।
कुछ सपने जीवन में ही ,
बुरी तरह बिखर जाते हैं ।।
जीवन उलझे सपनों में ,
जीवित व मृत हो जाते हैं ।
होश संभालते मानव के ,
सपनों से प्रीत हो जाते हैं ।।
सपने रहे सपनों में उलझे ,
सपनों से बाहर ही सुलझे ।
रहे जो उलझे सपनों में ही ,
वही होते उलझे के उलझे ।।
सपने साकार करने में ,
बहुत बेकार चले जाते हैं ।
थक जाता है यह जीवन ,
संग अरमाॅं चले जाते हैं ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ