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पहुनाई और आपन घर

पहुनाई और आपन घर

पहुनाई में रह के दिन ना ओराई।
लौट के आवेके परी अपना घरे भाई।।
एक से दू दिन केहू पाहून सोहाला।
ओकरा बाद पाहून बोझ बन जाला।।
इज्जत एही में बाटे बेसी दिन ना गवांईं।
जाए के केहू बोले, ओहसे पहिले लौट आईं।।
पहिला दिन खाये के निमन भेंटाई।
दूसरा दिन से टूकूर टूकूर देखे के पड़ जाई।।
पहुनाई के लोग सोची जे,
पाहून कब ज‌इहें।
कतना दिन ले इहाँ बैठल बैठल,
एह घर के खाना ख‌इहें।।
भला एही में बाटे, अपना घरे लौट आईं।
घर के साग सत्तू जवन बाटे, आनंद से खाईं।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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