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"प्रारब्ध एवं संचित कर्म: मानव जीवन के कष्टों का रहस्य"

"प्रारब्ध एवं संचित कर्म: मानव जीवन के कष्टों का रहस्य"

जीवन में आने वाले कष्ट केवल संयोग नहीं होते, ये हमारे प्रारब्ध और संचित कर्मों का फल होते हैं। प्रारब्ध वह बीज है जो पिछले जन्मों के कर्मों से बोया गया, और वर्तमान जीवन उसी बीज का वृक्ष है।

लेकिन यही सत्य हमें हताश नहीं करता, बल्कि प्रेरित करता है—कि हम अपने वर्तमान कर्मों से भविष्य को बेहतर बना सकते हैं। कष्टों को स्वीकार कर, उन्हें आत्म-विकास का अवसर बनाएं। हर कठिनाई हमें भीतर से मजबूत बनाती है, और यही समझ हमें जीवन की सच्ची दिशा देती है।

इसलिए, कष्टों से डरिए मत—उन्हें साधन बनाइए अपने चरित्र निर्माण का।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)

पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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