अभी कुछ हुआ बहुत बाकी है ,
हृदय ठंढा कहाॅं उस माॅं की है ।ये आपरेशन उस सिंदूर रक्षा हेतु ,
जो अस्तित्व हर बहन माॅं की है।।
तेरी माॅं बहन भी उसी सिंदूर तले ,
जिस सिंदूर का तुम हत्यारा हो ।
बच नहीं सकते कहीं छिपे रहो ,
अब तुम एक मौत का प्यारा हो।।
नाश का कारण तुम बने तबसे ,
जब अहंकार तेरा खुदा हुआ है ।
तेरे इसी खुदा ने खोदी है खाई ,
ज्ञानी गणेश तुझसे जुदा हुआ है।।
जितनी माॅं बहनें इस भारत में ,
रग रग भारत माॅं अवस्थित है ।
हम हैं उन भारत माॅं के पुजारी ,
जहाॅं महिला सिंदूर प्रतिष्ठित है ।।
तू भी किसी सिंदूर के होगे बेटे ,
किसी का स्वयं तू सिंदूर होगा ।
कोसेंगी वे भाग्य को उस दिन ,
जब सदा को उनसे तू दूर होगा ।।
सिंदूर की शक्ति असीम है होती ,
सिंदूर ने शक्ति निज दिखा दिया ।
सिंदूर रक्षक बनकर तुम आए हो ,
आज सिंदूर ने तुझे सीखा दिया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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