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नशा

नशा

नशा करबs निशा होई ,
कुंभकर्ण के दिशा होई ।
कोई ना रही तोहरा पीछे ,
बालि नाली किसा होई ।।
जब जीवन में निशा होई ,
दिवा भी तब निशा होई ।
समय के ताक में रही सभे ,
सारा जीवन पचीसा होई ।।
जीवन फुटल सीसा होई ,
उमिर घट के तीसा होई ।
गाॅंव गिनती एकपीसा होई ,
नाली में झीसीझीसा होई ।।
निशा के हिसा में हिंसा होई ,
रोग में ना कोई हिसा होई ।
कोई काटियो पाई उहे ,
जे जईसन बीया बोई ।।
सब कोई जब हॅंसी ,
तोहर जीवन रोई ।
नशा निशा में दिवा निशा ,
खून चूस जीवन खोई ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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