“दिव्य रश्मि” – एक चेतना, एक संकल्प :- प्रेम सागर पाण्डेय

28 मई 2014 को जब “दिव्य रश्मि” मासिक पत्रिका का पहला अंक पूज्य स्वर्गीय सुरेश दत्त मिश्र जी की प्रेरणा से प्रकाशित हुआ, तब यह केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुई थी। इसका उद्देश्य स्पष्ट था—सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति, सामाजिक चेतना और आध्यात्मिक विचारों को घर-घर तक पहुँचाना, न कि केवल पन्नों तक सीमित रह जाना।
इन 12 वर्षों में, जब अनेक प्रकाशन समय और संसाधनों की चुनौती से जूझते हुए थक गए, तब “दिव्य रश्मि” ने अपनी निरंतरता, गुणवत्ता और उद्देश्यपरक लेखन के माध्यम से न केवल एक विशिष्ट स्थान बनाया, बल्कि पाठकों के बीच एक विश्वसनीय मंच के रूप में स्थापित हो गई। इस स्थायित्व के पीछे यदि कोई नाम विशेष उल्लेखनीय है, तो वे हैं डा० राकेश दत्त मिश्र (R D Mishra), जो इस पत्रिका के संस्थापक-संपादक हैं। उनका समर्पण, तपस्या और दृष्टिकोण आज के युग में दुर्लभ है।
✦ उद्देश्य से आंदोलन तक
“दिव्य रश्मि” का उद्देश्य केवल धर्म प्रचार तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा समावेशी मंच है, जो राष्ट्रवाद, सामाजिक सरोकार, सांस्कृतिक अस्मिता, अध्यात्म, तथा सनातन परंपराओं को समान महत्व देता है। इसके हर अंक में धार्मिक आलेखों के साथ-साथ समसामयिक घटनाओं की विवेचना, शिक्षाप्रद रचनाएँ, पौराणिक स्थलों की जानकारी, खोजपरक लेख, ज्योतिष, योग, तथा समाजसेवा से जुड़े विचारों को विशेष स्थान दिया जाता है।
विशेषकर हिन्दू माताओं और बहनों के लिए यह पत्रिका श्रद्धा, जानकारी और आध्यात्मिक पोषण का केंद्र बन चुकी है। पौराणिक यात्राओं, तीर्थ स्थलों और धार्मिक अनुष्ठानों की जानकारी इसे जनमानस के और निकट ले जाती है।
✦ राजनीति से परे – राष्ट्र और धर्म के प्रति प्रतिबद्ध
“दिव्य रश्मि” का सबसे बड़ा वैशिष्ट्य यह है कि यह राजनीतिक आग्रहों और प्रलोभनों से सदैव दूर रही है। इसकी दृष्टि राष्ट्र और धर्म के प्रति समर्पित रही है, न कि किसी दल या व्यक्ति विशेष की विचारधारा के प्रति। आज जब मीडिया के एक बड़े हिस्से में पक्षपात और सनसनी हावी है, “दिव्य रश्मि” ने गंभीरता, सत्यता और अध्यात्मिक मूल्यों की रक्षा करते हुए जन-जन में एक संतुलित, सशक्त और संस्कारित सोच को बढ़ावा दिया है।
✦ भविष्य की ओर
वर्तमान डिजिटल युग में जब पढ़ने की प्रवृत्ति घटती जा रही है, “दिव्य रश्मि” ने प्रिंट और डिजिटल दोनों माध्यमों को अपनाकर एक नवाचारात्मक उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसकी वेबसाइट www.divyarashmi.com तथा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से यह पत्रिका युवाओं से लेकर वृद्धजनों तक, हर वर्ग तक पहुँच रही है।
यह पत्रिका केवल एक मासिक प्रकाशन नहीं, बल्कि एक धार्मिक-सांस्कृतिक परिवार है, जो आने वाली पीढ़ियों को धर्म, राष्ट्र और संस्कृति से जोड़ने का कार्य कर रहा है।
“दिव्य रश्मि” केवल एक नाम नहीं, वह विचार है – जो अंधकार में भी प्रकाश की रेखा खींचता है। यह वह संकल्प है, जो सनातन धर्म की अक्षुण्ण ज्योति को युगों तक जलाए रखने का व्रत लिए आगे बढ़ रहा है।
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