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बिल्ली बोली बिल से

बिल्ली बोली बिल से

बिल्ली बोली बिल से ,
तूने छुपा रखा है चूहा ।
अंदर बत्ती गुल रहेगी ,
बाहर घिर जाऍंगे कूहा ।।
गई थी जब मैं दिल्ली ,
वहीं बैठाई मैं दिल में ।
वहीं से संग लेके आई ,
तो क्या गया झील में ।।
जा रही डीओजी पास ,
वहीं रपट लिखाऊॅंगी ।
तू ही है अपहरणकर्ता ,
शीघ्र छापे मरवाऊॅंगी ।।
बुलाऊॅं अजगर दास को ,
तेरी घिग्घी बॅंध जाएगी ।
या तो सर्प करेगा साफ ,
तेरी हेकड़ी मिट जाएगी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार
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