आशीर्वचन:-डॉ. विवेकानंद मिश्र, राष्ट्रीय महासचिव, मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान, गया, बिहार
दिव्य रश्मि के १२वें स्थापना दिवस (२८ मई २०२५) के अवसर पर
संपूर्ण राष्ट्र को समर्पित एक वैचारिक दीप: 'दिव्य रश्मि'
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि 'दिव्य रश्मि' पत्रिका अपने १२वें स्थापना दिवस पर एक सशक्त वैचारिक मंच के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। इस पत्रिका ने सीमित संसाधनों के बावजूद समाज के विविध क्षेत्रों में व्याप्त समस्याओं को उजागर कर उनके समाधान हेतु सार्थक प्रयास किए हैं। इसका निर्भीक, निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति समर्पण प्रशंसनीय है।
आचार्य राधा मोहन मिश्र 'माधव' का मार्गदर्शन
'दिव्य रश्मि' की सफलता में बिहार के प्रख्यात साहित्यकार, कवि और समाजसेवी आचार्य राधा मोहन मिश्र 'माधव' का सतत मार्गदर्शन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उनकी विद्वता और अनुभव ने पत्रिका को दिशा प्रदान की है, जिससे यह समाज के विभिन्न वर्गों में अपनी पहचान बना सकी है।
'दिव्य रश्मि' का वैचारिक आधार स्वातंत्र्यवीर वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों से प्रेरित है। सावरकर जी ने 'हिंदुत्व' की परिभाषा देते हुए कहा था कि जो व्यक्ति भारतभूमि को अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है, वही हिन्दू है। उनके अनुसार, राष्ट्रवाद का आधार सांस्कृतिक एकता है, जो जाति, पंथ और भाषा के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एक सूत्र में पिरोती है। उन्होंने अस्पृश्यता को मानवता पर धब्बा बताया और सामाजिक समरसता पर बल दिया ।
'दिव्य रश्मि' ने अपने प्रकाशनों के माध्यम से न केवल सामाजिक कुरीतियों और समस्याओं को उजागर किया है, बल्कि उनके समाधान हेतु जनजागरण भी किया है। इस पत्रिका ने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, युवा जागरूकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जैसे विषयों पर विशेष ध्यान दिया है।
भविष्य में, 'दिव्य रश्मि' से अपेक्षा है कि वह राष्ट्रवादी विचारधारा को और अधिक व्यापकता से प्रसारित करे, समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु नवाचारों को प्रोत्साहित करे और युवा पीढ़ी को देशभक्ति, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक बनाए।
'दिव्य रश्मि' की १२ वर्षों की यात्रा एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे समर्पण, निष्ठा और दृढ़ संकल्प से सीमित संसाधनों में भी महान कार्य किए जा सकते हैं। मैं 'दिव्य रश्मि' की सम्पादकीय टीम को इस उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह पत्रिका भविष्य में भी समाज के लिए एक प्रकाशस्तंभ बनी रहेगी।
धन्यवाद।
डॉ. विवेकानंद मिश्र
राष्ट्रीय महासचिव, मानवाधिकार संरक्षण प्रतिष्ठान
डॉ. विवेकानंद पथ, गोल बगीचा, गया, बिहार
दिनांक: २८ मई २०२५
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