आओ,जी लें नेह से कुछ पल
अंतस्थ वृद्धन अंतराल ,निर्मित मौन कारा ।
व्याकुल भाव सरिता,
प्रकट सघन अंधियारा ।
पहल कर मृदु संप्रेषण,
हिय भाव दें रूप सकल ।
आओ,जी लें नेह से कुछ पल ।।
भीगा अंतर्मन संकेतन,
जीवन पथ रिक्ति भाव।
अस्ताचल स्वप्न माला,
धूप विलोपन छांव ।
अब विस्मृत कर भूत काल,
प्रेम पथ पर रहें अटल ।
आओ,जी लें नेह से कुछ पल ।।
जब विमल मृदुल घट,
होता दुर्भावना शिकार ।
सिहर उठता विश्वास सर,
उकर छल कपट विकार ।
तब स्पंदन आशा उमंग ,
जगाएं साहस आत्मबल ।
आओ,जी लें नेह से कुछ पल ।।
निष्ठुरता मदमस्त बन,
जब निश्छलता ठुकराती ।
ओज ढक यथार्थ का,
असत्य गले लगाती ।
तब स्नेहिल स्पर्शन प्रियतम,
दर्श अथाह आनंद वकल ।
आओ,जी लें नेह से कुछ पल ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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