श्रम की गरिमा
श्रम की गरिमा है महद ,जस नभ धरणी आकार ।
जीवन ऊॅंची जस रे बंदे ,
मानव जीवन है साकार ।।
अथक श्रम करे कृषक ,
निज क्षेत्र नित जोते बोए ।
उदर भरे जो जगत का ,
जगत पिता कहावे सोए ।।
रुपया कमात ये जगत है ,
रुपया खा पावत न कोय ।
ऊॅंच नीच हर बोल जग का ,
सहन करत कृषक तोय ।।
श्रमिक का भी श्रम देख ,
जिसका श्रम है बहुमूल्य ।
श्रम का कोई तुलना नहीं ,
श्रम अपने आप अतुल्य ।।
श्रम शब्द न तुच्छ होत ,
न श्रम से कुछ मूल्यवान ।
श्रम की गरिमा समझ ले ,
जग में होत वही महान ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com