Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अब तो दिन निकलते हैं

अब तो दिन निकलते हैं

फिर रात होती है,
अलार्म लगी घडी है,
दूसरों की इच्छा से-
जागती और सोती है !
कभी टिक-टिक ,कभी
ठक-ठक बोती है,
जाने क्यों दीवारों के-
आदेश ढोती है ।
खिड़कियाँ कहती हैं,
तुझे किसने मुट्ठी में रोका है,
चलती जा घडी,
ये अलार्म तो धोखा है !
घडी मुस्कुराती है,
कभी-कभी खिलखिलाती है,
लोग सोचते हैं, रोक लेंगे शायद,
वो ठहरती नही, निकल जाती है ।
उसके जाते ही आभास होता है,
कोई हँसता, कोई रोता है,
समय के साथ , समय के बाद का,
ताउम्र फैसला होता है !
अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ